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तालिबान-अफगानिस्तान मामले पर मीडिया की भूमिका पर बड़ा सवाल

तालिबान

एक समय था जब अधिकतर न्यूज़ चैनल्स विदेश से ही ट्यून होते थे और हम भारतीय उन्हीं के सेट एजेंडे पर निर्भर रहते थे। पर वर्ष 1990 के बाद भारतीय न्यूज़ चैनल्स में बड़े बदलाव आए और अब तो आलम यह है कि क्रांतिकारी बदलाव के साथ-साथ न्यूज़ कई प्लेटफॉर्म से नदारद हो गए और बचा रह गया ‘न्यूसेंस’ यानी कि बाधा,रुकावट।

ताज़ा उदाहरण तालिबान और अफगानिस्तान मसले पर ख़बरों के नाम पर सेट एजेंडा दर्शकों तक कैसे पहुंचाया जा रहा है इसे देखकर समझा जा सकता है। लंबी लड़ाई के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है। तालिबान के बड़े नेता अफगानिस्तान में सरकार बनाने के लिए माथापच्ची कर रहे हैं। इस दौरान काबुल से जिस तरह की तस्वीरे आ रही हैं, उससे पूरी दुनिया हैरान है। लोगों के जेहन में तालिबान के पिछले शासन की खौफनाक यादें जिंदा हैं।हालांकि तालिबान के तेवर पिछली बार की तुलना में कुछ अलग हैं।
पर इन सबके बीच भारतीय मीडिया का एक ऐसा चेहरा सामने आया जिसने ख़बरों की न तो तथ्यात्मक परख की न ही मीडिया नियमों को ध्यान में रखा।15 अगस्त को जब तालिबान, अफगानिस्तान की जनता पर बर्बर तरीके से कब्जा कर रहा था तो कुछ मीडिया चैनल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लाल किले पर दिए गए भाषण को दिखा कर पूरे वर्तमान काल को ‘अमृत काल’  कहकर संबोधित कर रहे थे।
हाँ इस बीच बहुत से ऐसे न्यूज़ चैनल भी थे जिन्होंने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की ताजा तस्वीरे दिखाते हुए हेडिंग चलाई कि ‘बिग्गेस्ट स्टोरी’ और ‘द बिग्गेस्ट कवरेज़’ आदि ,जिनमें CNNNews18 सबसे आगे रहा।सवाल यह है कि टीआरपी की रेस में न्यूज़ चैनल्स ऐसे पैटर्न में क्यों आ गए जहां न्यूसेंस की भाषा प्राथमिकता में है?
सबसे भयावह दृश्य तब देखने को मिला जब बिना किसी आधिकारिक घोषणा के कुछ न्यूज़ चैनल पहले से ही “तालिबान टेकओवर ऑफ अफगानिस्तान” नाम से कार्यक्रम चला रहे थे। ‘रिपब्लिक टीवी’ के कार्यक्रम की हेडलाइन थी ,’तालिबानी आतंक का राज’।’NDTV 24×7′  की हेडलाइन थी ‘टेरर ग्रुप तालिबान ने  जीता गेम ऑफ थ्रोन्स’। ‘इंडिया टुडे’ की हेडलाइन थी ‘अफगानिस्तान का सर्वनाश’।’CNNNews 18 की हेडलाइन थी,’तालिबान की घेराबंदी’।’टाइम्स नाउ’ ने तो ख़बर की जगह एक कैंपेन ही चला दी, हैशटैग के साथ बाकायदा लिखा गया ख़बरों के विज़ुअल्स पर #TalibanIslamistTerrorBack।
हालाँकि ये हेडलाइन्स उतना आश्चर्य नहीं करती क्योंकि नरेंद्र मोदी सरकार में ऐसे कमेंट्स या हेडलाइन आम हो चुके हैं। कुछ उदाहरण से समझिए, ‘इंडिया टुडे’ की हेडलाइन्स- ‘काबुल पर फिर शासन करने को तैयार आतंकवादी’,’तालिबानी आतंक के सुनामी’,’टाइम्स नाउ’ ऐसे मामलों में हमेशा सबसे अलग करता है,उनकी एक हेडिंग है ‘इस्लामी क्रूर लोगों की हक़ीकत देखें’।
क्रूरता के ऐसे वीडियोज़ टीवी पर दिखाए गए जो नियमतः ब्लर करके दिखाए जाने थे। इस मामले में रिपब्लिक टीवी सबसे आगे रहा।कुछ भयानक तस्वीरे जो मीडिया नियमों के मुताबिक़ टीवी पर नहीं दिखाए जा सकते, नियमों को ताक पर रख उन्हे दिखाए गए।
अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की चिंता को प्राथमिकता न देते हुए ये दिखाते रहे कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी पर भारत के मुस्लिम नेताओं की राय बंटी हुई है,”‘देखें एक्सक्लूसिव’ हमारे साथ”। .

तालिबान बदला है,लेकिन मीडिया ने क्या किया?

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर जफरुल इस्लाम कहते हैं कि तालिबान भी अफगानिस्तान की मिट्टी के बेटे हैं।उन्होंने विदेशी ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और स्थानीय कठपुतली सरकार को भी हराया है। तालिबान की जीत भारी स्थानीय समर्थन के बिना संभव नहीं थी। पहले उन्होंने सोवियत रूस को हराया और अब अमेरिका को। इस मामले पर मीडिया की भूमिका भी संदिग्ध है।
उन्हें तो इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि पिछले कुछ हफ्तों की उनकी घोषणाएं लोगों को यह आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त थीं कि तालिबान बदल गए हैं।
‘तालिबान भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा या दुश्मनी का’ ऐसी बहस क्यों चलाई गई जबकि उस वक़्त भी अफगानिस्तान के लोगों की बर्बरता से हत्याएं हो रही थीं। भारत के डॉक्टर जफरुल इस्लाम कहते हैं कि”तालिबान ने अफगानिस्तान में भारत के विकास कार्यों की सराहना की है।वे हमारी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं।कश्मीर को लेकर भी हमें बहुत ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि 1990 के दशक में जिन लोगों ने कश्मीर में हालात खराब किए थे, वह तालिबानी नहीं थे या तो वो पाकिस्तानी थे या अरब थे, जिनको अमेरिका ने अफगान में रखा था।वैसे भी तालिबान सरकार भारत के खिलाफ पाकिस्तान के साथ गठजोड़ करे, यह संभव नहीं है। वे कैसे भूल जाएंगे कि जनरल मुशर्रफ ने उन्हें छोड़ दिया और अमेरिकियों के सामने फेंक दिया। इसके अलावा अफगानिस्तान की भूमि के बड़े हिस्से पर पाकिस्तान के साथ विवाद है।”
क्या यह सब बातें यह नहीं तय करतीं कि देश में किस तरह की मानसिकता को पनाह दी जा रही है?ये क्या न्यूज़ चैनल्स का किया धरा नहीं है?
 ‘तालिबान के बयान से एक उम्मीद की किरण दिख रही’, यह हेडलाइन हिला देती है। ये कौन सा न्यूज़ चैनल है जिन्हें अमानवीय प्रवृत्ति के बीच किरण दिखाई दे रही है! ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मशावरत के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवेद हामिद कहते हैं कि ऐतिहासिक तौर देखें तो अमेरिका के साथ वही हुआ है, जो ब्रिटेन और रूस के साथ हुआ है। अफगानिस्तान में पिछले दो दशकों तक स्थानीय लोगों के अधिकारों का हनन कर सरकार चलाई गई।
पश्चिम देशों की सैन्य शक्तियों के दम पर शासन करने वाले भ्रष्ट और डरपोक नहीं होते तो वो संघर्ष किए बगैर देश नहीं छोड़ते।देश की सत्ता कैसी हो यह अफगानियों का आंतरिक मामला है, जिसमें किसी बाहरी मुल्क का दखल नहीं होना चाहिए। दरअसल इन बयानों के बीच यह समझना बेहद ज़रूरी है कि न्यूज़ चैनल पर हो रही बहस के क्या मायने हैं, यह कितना प्रभावित करती हैं!
एक सुर में अपील क्यों नहीं की गयी कि अफगानिस्तानियों को बचाने के लिए भारत आगे आए या अन्य देश आगे आएं। शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना सैफ अब्बास कहते हैं कि तालिबान आतंकी संगठन है जो पूरी दुनिया के लिए खतरा है।तालिबानी इस्लाम की बात करते हैं जबकि यह खुद मुसलमान नहीं है, क्योंकि इस्लाम में किसी को भी इस बात की इजाजत नहीं दी गई है कि वह किसी की हत्या करे। अब्बास कहते हैं कि तालिबान को पाकिस्तान का सपोर्ट है।पाकिस्तान के पीछे चीन इजरायल और अमेरिका जैसे देश हैं।आईएसआईएस पर ईरान ने इराक में घुसकर हमला किया और बेकसूर लोगों को बचाया। इसी तरह भारत और ईरान को अफगानिस्तान के लोगों को बचाने के लिए कदम उठाना चाहिए।
इस बीच कुछ मीडिया एजेंसी और न्यूज़ चैनल्स ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की और सही जानकारी तथ्यों के साथ दर्शकों ,पाठकों तक पहुंचें इसके लिए गम्भीर रहे। ‘BBC World’,’Al-Jazeera’,’CNN International’ वे न्यूज़ चैनल्स हैं जिन्होंने साम्प्रदायिकता भरे हेडलाइन चलाने के बजाय सबसे पहले यह दिखाया कि कैसे अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ़ घनी हेलीकॉप्टर से अपना देश छोड़ निकल गए।

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