गत् पखवाड़े आयोजित नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत के निर्माण पर जोर देकर कहा कि हमारा फोकस सिर्फ इस बात पर है कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत का निर्माण का लक्ष्य प्राप्त किया जाए। इस बैठक के बाद नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने एक बयान जारी कर भारत को जापान से आगे निकालते हुए दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा किया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या वाकई भारत दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्ययस्था वाला देश बन गया है?
गत पखवाड़े प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और केंद्र शासित राज्यों के राज्यपालों के साथ नीति आयोग की बैठक में पीएम मोदी ने विकसित भारत के निर्माण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि ‘हमारा फोकस सिर्फ इस बात पर है कि वर्ष 2047 तक विकसित भारत का निर्माण का लक्ष्य जल्द से जल्द प्राप्त किया जाए। हमारा लक्ष्य यही होना चाहिए कि हर राज्य, हर शहर, हर नगर पालिका और गांव विकसित हो। अगर हम इस दिशा में काम करेंगे तो हमें विकसित भारत बनने के लिए 2047 तक का इंतजार भी नहीं करना पड़ेगा। हमारे पास 140 करोड़ लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने का अच्छा अवसर है। हमें अपने कार्यबल में महिलाओं को शामिल करने की दिशा में काम करना चाहिए। ऐसे कानून और नीतियां बनानी चाहिए जिससे उन्हें कार्यबल में सम्मानपूर्वक शामिल किया जा सके।’ बैठक के ठीक बाद नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने एक बयान जारी कर भारत को जापान से आगे निकालते हुए दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का दावा किया गया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या भारत 2047 में अपने लक्ष्य को हासिल कर लेगा? क्या देश सही दिशा में जा रहा है? क्या वाकई भारत दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्ययस्था वाला देश बन गया है? इन दावों में कितनी सच्चाई है? ऐसे सवालों को लेकर देश की राजनीति में नई बहस छिड़ गई है।
सुब्रमण्यम ने क्या कहा?
बीते 24 मई को सुब्रमण्यम ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा, ‘मैं जब बोल रहा हूं, इस समय हम चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। हम 4 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था हैं और यह मेरा डाटा नहीं आईएमएफ का डाटा है। आज भारत जीडीपी के मामले में जापान से बड़ा है।’ लेकिन इसके ठीक दो दिन बाद ही नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी ने कहा कि 2025 के अंत तक भारत दुनिया की चैथी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
क्या कहते हैं अर्थशास्त्री
चैथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के इन दावों के बीच कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत जांचने का एक आम तरीका है जीडीपी की गणना जो आम तौर पर डाॅलर में होती है। जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रहता है। भारत एक विशाल आबादी के साथ आर्थिक रूप से सही दिशा में प्रगति कर रहा है। आईएमएफ ने भारत की जीडीपी का जो अनुमान लगाया है वह 2025 के अंत तक 4.19 ट्रिलियन का है जबकि जापान की अर्थव्यवस्था के लिए 4.186 ट्रिलियन का अनुमान है। ये आकलन डाॅलर में है और अंतर बहुत मामूली है। लेकिन अगर जापानी मुद्रा येन के मुकाबले रुपये में उतार- चढ़ाव आता है तो ये अंतर भी जाता रहेगा। इसके अलावा आईएमएफ ने 2025 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है और महंगाई दर के 4.2 प्रतिशत होने का। ऐसे में अगर ये आंकड़े स्थिर नहीं रहे तो फिर स्थिति वही हो जाएगी। आईएमएफ के डेटा से पता चलता है कि यह बयान थोड़ा पहले ही दे दिया गया जबकि वास्तव में भारत 2025 के अंत तक नाॅमिनल जीडीपी के मामले में जापान से आगे निकलकर चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।
आईएमएफ की अप्रैल की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा ग्रोथ के हिसाब से नाॅमिनल जीडीपी के मामले में 2028 तक भारत जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। जबकि
अमेरिका और चीन दुनिया की दो शीर्ष अर्थव्यवस्थाएं बनी रहने वाली हैं। जानकारों का कहना है कि आईएमएफ आंकड़ा इकट्ठा करने वाली बाॅडी नहीं है और वह उन देशों के दिए आंकड़ों के हिसाब से ही डेटा जारी करती है। जीडीपी के आंकड़े हर तिमाही में जुटाए जाते हैं। इसके अलावा दो साल बाद मुकम्मल आंकड़े आते हैं। तिमाही डेटा में जीडीपी के सही आंकड़े नहीं आते हैं और जो आंकड़े आते हैं उसमें मान लिया जाता है कि जिस तरह संगठित क्षेत्र में चल रहा है, असंगठित क्षेत्र में भी चल रहा है। लेकिन नोटबंदी और फिर कोरोना महामारी के चलते लाॅकडाउन के बाद जो गिरता हुआ सेक्टर है उसे हम मान लेते हैं कि वह बढ़ रहा है। इससे हमारा जीडीपी ग्रोथ बढ़ जाता है और यही दिक्कत है आंकड़ों की। हाल ही में ट्रम्प के टैरिफ वाॅर से दुनिया की अर्थव्यवस्था का कितना नुकसान होने वाला है, उसका बस अंदाजा लगाया जा रहा है। इसका भारत पर भी असर पड़ेगा। आईएमएफ का पूर्वानुमान अप्रैल 2025 का है। देखना होगा कि आगे क्या होता है। नाॅमिनल जीडीपी का जापान से आगे निकलना, आईएमएफ का प्रोजेक्शन (अनुमान) है और दावा करने में जल्दबाजी की गई है।
जल्दबाजी के पीछे क्या है वजह?
जानकार कहते हैं कि हाल में पाकिस्तान के साथ तनाव के दौरान अचानक सीजफायर के बाद सरकार चाहती है कि उसकी छवि एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में उभरे और उस पर चर्चा हो। लेकिन समय से पहले जीडीपी के दावा पूरी तरह राजनीतिक प्रतीत होता है। यह पाकिस्तान के साथ हालिया झगड़े और सीजफायर के बाद जनता में भरोसा पैदा करने की एक कोशिश भी हो सकती है। जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय जापान का 15वां हिस्सा ही है। यह तब है जब जापान की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आई है। 2010 में यह 6 ट्रिलियन डाॅलर थी लेकिन बुजुर्ग होती आबादी, उत्पादन में स्थिरता और आर्थिक सुस्ती के कारण यह सिकुड़ गई है। साथ ही भारत ने अपने नाॅमिनल जीडीपी में लगभग दोगुने की वृद्धि की है वर्ल्ड रैंकिंग में इसका भी असर है। वल्र्डोमीटर वेबसाइट के अनुसार, 2025 के अंत तक जापान की प्रति व्यक्ति जीडीपी 33,806 डाॅलर होने का अनुमान है। जबकि भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 2,400 डाॅलर होगी जो कि कीनिया, मोरक्को, लीबिया, माॅरीशस और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से भी कम है।
असमानता पर छिड़ी बहस
जीडीपी और सम्पन्नता में बढ़ती गैर बराबरी को लेकर सोशल मीडिया पर भी बहस छिड़ गई है। एक एक्स यूजर ने अपनी पोस्ट में कहा, ‘अगर अर्थव्यवस्था के शीर्ष एक प्रतिशत, पांच प्रतिशत और फिर 10 प्रतिशत को निकाल दें तो भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी कितनी होगी। अर्थव्यवस्था में 50 प्रतिशत निचले पायदान के लोगों की प्रति व्यक्ति जीडीपी कितनी होगी?’
कई अर्थशास्त्री प्रति व्यक्ति आय को किसी देश की आर्थिक प्रगति के आकलन का एक सही मानक मानते हैं और भारत इस मामले में दुनिया में 140वें स्थान पर है। दूसरी तरफ अरबपतियों की संख्या के मामले में तीसरे नम्बर पर है। यह ये दिखाता है कि भारत में अमीर और अमीर हो रहा है और गरीब की स्थिति कुछ खास बदल नहीं रही है या गिरावट में है। नाॅमिनल जीडीपी का आकलन महंगाई दर को समायोजित करके किया जाता है, जबकि बिना इसके की गई गणना को रियल जीडीपी कहा जाता है।
सही दिशा में जा रहा है भारत?
पाॅलिसी और जियोपाॅलिटिक्स स्ट्रैटेजिस्टकों की मानें तो हाल के सालों में भारत की प्रति व्यक्ति आय अधिकांश यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ी है। हर बार जब भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती है तो कोई न कोई ये रटी रटाई बात कहता है कि प्रति व्यक्ति आय कम है। भारत मोनाको नहीं है यह 1.4 अरब लोगों की तेजी से आगे बढ़ने वाली आबादी है। साल 2023 में प्रति व्यक्ति इनकम 9.2 फीसदी बढ़ी जो यूरोप के अधिकांश देशों की तुलना में ज्यादा है। आप किसी बड़े देश को बुटीक मेट्रिक्स से नहीं मापते। आप इसे गति, पैमाने और रणनीतिक प्रभाव से मापते हैं। भारत आगे नहीं बढ़ रहा है, बल्कि आगे निकल रहा है इसे समझना होगा। हालांकि जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे अरुण कुमार कहते हैं कि नाॅमिनल जीडीपी का जापान से आगे निकलना, आईएमएफ का प्रोजेक्शन (अनुमान) है।
भारत को बनना होगा मैन्युफैक्चरिंग हब
नीति आयोग के मुताबिक वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को 30 ट्रिलियन (लाख करोड़) डाॅलर तक ले जाना होगा। भारत का नाॅमिनल ग्रोथ रेट 10-11 प्रतिशत चल रहा है, इसलिए यह मुश्किल भी नहीं है। लेकिन हमें यह देखना होगा कि इस जीडीपी का वास्तविक मूल्य (रियल वैल्यू) क्या है। रियल टर्म में 30 ट्रिलियन डाॅलर के लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत को लगातार 7.5-8 प्रतिशत की दर से विकास दर हासिल करना होगा। इस काम के लिए निजी पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी के साथ श्रमिकों की कुशलता, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ कारोबार को आसान बनाने के साथ भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनना होगा। वर्ष 2024-25 के आर्थिक सर्वेक्षण में भी कहा गया है कि 2047 तक विकसित भारत के निर्माण के लिए भारत को अगले दो दशक तक आठ प्रतिशत की दर से विकास करना होगा और निवेश में जीडीपी की 35 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी होनी चाहिए।
विपक्ष ने उठाए सवाल
दुनिया की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के नीति आयोग के दावे पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सरकार से सवाल पूछते हुए कहा कि सरकार मध्यम वर्ग की परेशानी और बेरोजगारी पर भी बात करे। सरकार को यह देखना चाहिए कि इससे आम नागरिकों को कितना फायदा हो रहा है। सरकार को प्रति व्यक्ति आय, अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई, ईएमआई चुकाने में संघर्ष कर रहे मध्यम वर्ग, एमएसएमई क्षेत्र, बेरोजगारी जो 45 साल का रिकाॅर्ड तोड़ रही है इस पर भी थोड़ा ध्यान देना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि इससे मध्यम वर्ग कितनी तरक्की कर रहा है।
आरजेडी नेता मनोज झा ने सरकार से कहा कि क्या अर्थव्यवस्था बढ़ने से आम आदमी पर कुछ असर पड़ेगा? आम नागरिकों को अर्थव्यवस्था तब समझ आती है जब तरक्की और खुशहाली हर जगह पहुंचे। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या यह बात जमीन पर उतरी है? क्या इसका असर आम आदमी पर पड़ा है? संविधान के अनुच्छेद 39(सी) में समान आय की बात कही गई है। लेकिन क्या इसका फायदा आम आदमी को मिल रहा है?