पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर अगर नजर डालें तो राजनीतिक तौर पर ऐसी कई चीजें हुई हैं जो सामान्य नहीं हैं और इस ओर इशारा कर रही है कि महाराष्ट्र में जिस तरीके से एनसीपी में टूट हुई है वैसी ही टूट बिहार में जनता दल यूनाइटेड में देखने को मिल सकती है। संभावना जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक बार फिर अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर एनडीए में वापस आ सकते हैं।
दरअसल, पिछले साल अगस्त में नीतीश कुमार के बीजेपी से अलग होकर आरजेडी के साथ नई सरकार बनाने के बाद से बीते 10 महीने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पांच बार बिहार दौरे पर जा चुके हैं। उन्होंने हर बार अपने भाषण में नीतीश कुमार पर जोरदार हमला किया है और एलान किया है कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। मगर दिलचस्प बात यह है कि बीते 29 जून को जब अमित शाह बिहार पहुंचे थे तो लखीसराय की जनसभा में उन्होंने इस बात को नहीं दोहराया कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं। इसके उलट शाह भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर नीतीश कुमार की अंतरात्मा को जगाने की कोशिश करते रहे और सवाल खड़े किए कि नीतीश कुमार केवल सत्ता पाने के लिए ऐसे लोगों के साथ गठबंधन कर रहे हैं जिनके ऊपर 20 लाख करोड़ से भी ज्यादा के घोटाले के आरोप हैं।
अमित शाह के इस नरम रुख के बाद बिहार के राजनीतिक गलियारे में कयासबाजी शुरू हो गई कि क्या बीजेपी भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर नीतीश कुमार के लिए एक बार फिर पलटी मारने के लिए ग्राउंड तैयार कर रही है?
गौरतलब है कि 2017 में भी बीजेपी ने तेजस्वी यादव के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर नीतीश कुमार के लिए मैदान तैयार किया था। इसके बाद नीतीश कुमार ने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनकर आरजेडी से गठबंधन तोड़ कर दोबारा बीजेपी के साथ सरकार बना ली थी।
मौजूदा समय में आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद का परिवार लैंड फाॅर जाॅब घोटाला और आईआरसीटीसी घोटाले में फंसा हुआ है और इन दोनों मामलों में जांच एजेंसियों की कार्रवाई भी तेज हो चुकी है। इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर तेजस्वी यादव को लैंड फाॅर जाॅब घोटाले में आने वाले दिनों में गिरफ्तार कर लिया जाता है तो यह नीतीश कुमार के लिए दोबारा एनडीए में आने के लिए एक मुफीद वजह हो सकती है और वे महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ आ सकते हैं।
इस बात अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार आमतौर पर अपने विधायकों के साथ एक-एक कर मुलाकात नहीं करते हैं। लेकिन पिछले दिनों के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डालें तो जिस दौरान अमित शाह लखीसराय दौरे थे उससे 2 दिन पहले से ही नीतीश कुमार ने अपने सभी विधायकों के साथ एक-एक करके मुलाकात करना शुरू कर दिया था।
सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार अपने विधायकों से एकजुट रहने के लिए भी कह रहे हैं। इस बैठक के बाद कयास लगाए जा रहे हंै कि नीतीश कुमार को भी अपनी पार्टी में टूट का खतरा लग रहा है। इसी कारण से वे अपने विधायकों के मन को टटोल रहे हैं और उन्हें एकजुट रहने के लिए कह रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि नीतीश कुमार संभवतः आने वाले दिनों में कहीं फिर से पलटी मारने की तो नहीं सोच रहे हंै जिसको लेकर वह अपने विधायकों को एकजुट रहने के लिए कह रहे हैं।
गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों से लगातार आरजेडी की तरफ से इस बात को लेकर दबाव बनाया जा रहा था कि नीतीश कुमार विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बन जाए और फिर तेजस्वी यादव को बिहार की सत्ता सौंप दें। लेकिन 23 जून की बैठक में जिस तरीके से राहुल गांधी के नेतृत्व में सभी विपक्षी पार्टियों ने काम करने को लेकर रजामंदी जताई थी उसके बाद लालू और तेजस्वी नाखुश हैं।
आरजेडी में इस बात को लेकर रोष है कि अगर नीतीश कुमार दिल्ली नहीं जाते हैं या फिर विपक्ष के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं बनते हैं तो वह बिहार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे और फिर 2025 तक तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री ही रहना होगा। दूसरी तरफ महाराष्ट्र में हुए सियासी खेल के बाद अब बीजेपी सांसद और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने भी अपने एक ट्वीट से बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। उन्होंने दावा किया है कि जिस तरीके का विद्रोह एनसीपी में हुआ है वैसा ही बिहार में भी संभव है।