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क्या है वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद 

वाराणसी के इतिहास में 6 मई का दिन महत्वपूर्ण है। यहां की गलियों में चप्पे-चप्पे पर पुलिस की तैनाती की गई थी। हर आने-जाने वाली की चेकिंग हो रही थी। क्योंकि इस दिन अदालत के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे हो रहा था। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी पुराना है। दावा किया जा रहा है कि इसे औरंगजेब ने एक मंदिर तोड़कर बनवाया था। मंदिर मस्जिद का यह विवाद अयोध्या जैसा है। अंतर सिर्फ इतना है कि वहा बाबरी मस्जिद थी तो यहां ज्ञानवापी मस्जिद।
भारतीय राजनीति दशकों तक राम मंदिर के इर्द गिर्द चलती रही है। कोर्ट के फैसले से अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। उसके बाद भी राम मंदिर एक पार्टी विशेष के लिए हर चुनाव में मुद्दा बन जाता है।  ठीक इसी तरह अब ज्ञानवापी मस्जिद विवाद राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है। वैसे भी भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद ने जिन तीन मंदिरों को लेकर उद्धघोष किया था उनमें काशी भी शामिल है। “अयोध्या तो एक झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है। ” 90 के दशक में इसी नारे ने भाजपा को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया था। एक बार फिर इस नारे के सहारे राजनीतिक दल मंदिर मस्जिद का मुद्दा बना सकते है। फ़िलहाल , कोर्ट के फैसले के बाद मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी का काम शुरू हो गया है। हालांकि पहले मुस्लिम पक्षकारों ने इसका विरोध किया था लेकिन पुलिस की सख्ताई के आगे उनकी एक ना चली।

यह मामला करीब 30 साल पहले न्यायालय में गया था।  1991 में पुजारियों के एक समूह ने बनारस की कोर्ट में याचिका दायर करके ज्ञानवापी मस्जिद में गर्भगृह होने का दावा करते हुए वहां पूजा करने की अनुमति मांगी थी।  इस मामले में मस्जिद की देखभाल करने वाली अंजुमन इंतजामिया मसाजिद को प्रतिवादी बनाया गया था। करीब 6 साल के सुनवाई के बाद 1997 में कोर्ट ने दोनों पक्षों के पक्ष में मिला-जुला फैसला सुनाया था।  जिसके बाद दोनों पक्ष इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए। हाईकोर्ट ने 1998 में निचली अदालत के फैसले पर रोक लगा दी।  उसके बाद से यह मामला ठंडे बस्ते में ही पड़ा रहा।

गत 18 अगस्त 2021 को दिल्ली की पाँच महिलाओं ने बनारस की एक अदालत में एक याचिका दाखिल की थी।  इन महिलाओं काका कहना है कि उन्हें मस्जिद के परिसर में माँ शृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, आदि विशेश्वर, नंदीजी और मंदिर परिसर में दिख रही दूसरी देवी देवताओं का दर्शन, पूजा और भोग करने की इजाज़त मिलनी चाहिए। इसके साथ ही इन महिलाओं का यह भी दावा है कि माँ शृंगार देवी, भगवान हनुमान और गणेश, दिखने वाले और अदृश्य देवी देवता दशाश्वमेध पुलिस थाने के वार्ड के प्लॉट नंबर 9130 में मौजूद हैं। यह एरिया काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से सटा हुआ है। अपनी याचिका में इन महिलाओं ने अलग से एक अर्ज़ी देकर यह भी मांग रखी कि इस मामले में न्यायालय एक अधिवक्ता आयुक्त  की नियुक्ति भी करे जो इन सभी देवी देवताओं की मूर्तियों के अस्तित्व को सुनिश्चित करें। गत 8 अप्रैल 2022 को बनारस की लोअर कोर्ट ने स्थानीय वकील अजय कुमार को अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त कर परिसर का निरीक्षण और निरीक्षण की वीडियोग्राफी करने के आदेश दिए। साथ ही ज़रुरत पड़ने पर स्थानीय प्रशासन को पुलिस बल मुहैया कराने के आदेश भी दिए। लेकिन बनारस की अंजुमन इन्तेज़ामिया मस्जिद के प्रबंधन ने इसको हाई कोर्ट में चुनौती दे दी। उनका कहना था कि किसी पक्षकार को सबूत इकट्ठा करने की इजाज़त नहीं है।  प्रबंधन के अनुसार आयुक्त सिर्फ सबूत को स्पष्ट दृष्टिकोण में पेश कर सकते हैं , लेकिन सबूत इकठ्ठा नहीं कर सकते हैं। हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल को मस्जिद प्रबंधन की याचिका खारिज कर दी तथा लोवर कोर्ट के आदेशों का अनुपालन के लिए कहा।

इस मामले में हिंदू पक्षकारों की मांग है कि ज्ञानवापी परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करके यह पता लगाया जाना चाहिए कि जमीन के अंदर का भाग मंदिर का अवशेष है या नहीं। साथ ही विवादित ढांचे का फर्श तोड़कर ये भी पता लगाया जाए कि 100 फीट ऊंचा ज्योतिर्लिंग स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ भी वहां मौजूद है या नहीं। इसके अलावा मस्जिद की दीवारों की भी जांच कर पता लगाया जाए कि ये मंदिर की है या नहीं।  इन्हीं दावों पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पुरातात्विक सर्वेक्षण टीम को ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करने के आदेश दिए। ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हिन्दू पक्ष पूरे मस्जिद परिसर पर अपना दावा कर रहा है।  हिन्दू पक्षकारों का दावा है कि जिस तरह से बाबर ने राम मंदिर को तोड़कर बाबरी का निर्माण कराया था, ठीक उसी तरह से औरंगजेब ने ज्ञानवापी का निर्माण कराया। उनका यह भी कहना है कि काशी विश्वनाथ का गर्भगृह मस्जिद के अंदर है। उनके द्वारा यह भी दलील दी गई है कि शिव मंदिर के बाहर नंदी का सिर हमेशा शिवलिंग की तरफ होता है।  जबकि काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर नंदी का सिर मस्जिद की ओर है। इससे सिद्ध होता है कि नंदी गर्भगृह को देख रहा है। कहा जाता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करीब 2050 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने करवाया था। जबकि हिंदू पक्षकारों का दावा है कि मुगल शासक औरंगजेब ने साल 1664 में मंदिर को तोड़कर उसके अवशेषों पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण कराया था। साथ ही उनका यह भी दावा है कि इसके नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है।

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर स्पष्ट और पुख्ता ऐतिहासिक जानकारी बहुत कम है।  जबकि इस मामले में किस्सों-कहावतों की भरमार ज्यादा है। मंदिर-मस्जिद के निर्माण और पुनर्निमाण को लेकर आम धारणा यह रही है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगज़ेब ने तुड़वाया और वहां मस्जिद बना दी।  लेकिन अगर ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को देखे तो यह मामला ज्यादा पेंचीदा नजर आता है। इस मुद्दे पर इतिहासकारों में भी मतभेद सामने आए है। कुछ का मानना है कि ज्ञानवापी मस्जिद को 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तानोंने बनवाया था। इस बाबत यहां पहले से मौजूद विश्वनाथ मंदिर को तोड़ दिया गया था। तमाम इतिहासकार इस तथ्य को सही नहीं मानते है। क्योंकि यह दावा साक्ष्यों की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। शर्की सुल्तानों की ओर से कराए गए किसी निर्माण का कोई साक्ष्य यहां नहीं मिलता है। साथ ही उनके दौर में किसी मंदिर तोड़े जाने का कहीं कोई ब्योरा भी यहां दर्ज नहीं है। विश्वनाथ मंदिर के निर्माण का श्रेय अकबर के नवरत्नों में से एक राजा टोडरमल को दिया जाता है। बताया जाता है कि 1585 में अकबर के आदेश पर दक्षिण भारत के विद्वान नारायण भट्ट की मदद से इसकी नींव रखी थी।

भगवान विश्वेश्वरनाथ के वादमित्र पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी की तरफ से दाखिल याचिका में 10 दिसंबर 2019 को कहा गया था कि करीब चार दशक पहले भगवान विश्वेश्वर मेरे सपने में आए थे और काशी के कोतवाल कालभैरव से कहा था कि विवादित ढांचे के नीचे पड़े उनके ज्योतिर्लिंग को मुक्त कराएं। इस अधिवक्ता ने यह दावा किया था कि कथित विवादित परिसर में स्वयंभू विश्वेश्वरनाथ का शिवलिंग आज भी स्थापित है। यह देश के बारह ज्योतिर्लिगों में से एक है । परिसर में ज्ञानवापी नाम का बहुत ही पुराना कुआं है और इसी कुएं के उत्तर की तरफ भगवान विश्वेश्वरनाथ का मंदिर है। 15 अगस्त 1947 को भी विवादित परिसर का धार्मिक स्वरूप मंदिर का ही था। इस मामले में केवल एक भवन ही विवादित नहीं है, बल्कि एक बहुत बड़ा परिसर भी विवादित बताया जा रहा है। इसका धार्मिक स्वरूप तय करने के लिए एक भवन तक ही सीमित नहीं रहा जा सकता, बल्कि पूरे परिसर का धार्मिक स्वरूप तय होना जरूरी है।

जबकि दूसरी तरफ ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज पढ़ाने वाले मुफ्ती अब्दुल बातिन नोमानी कहते हैं कि ज्ञानवापी का विवाद बाहर के लोगों ने खड़ा किया है। बनारस के हिन्दुओं ने कभी इसे मुद्दा नहीं बनाया। विश्वनाथ मंदिर के महंत से आज भी हमारे अच्छे रिश्ते हैं। जहां तक मस्जिद और मंदिर की बात है तो दोनों को अकबर ने 1585 के आस-पास नए मज़हब ‘दीन-ए-इलाही’ के तहत बनवाए थे।  लेकिन इसके दस्तावेज़ी साक्ष्य काफी दिन बाद के हैं। ज़्यादातर लोग तो यही मानते हैं कि मस्जिद अकबर के ज़माने में बनी थी। औरंगज़ेब ने मंदिर को तुड़वा दिया था, क्योंकि वो ‘दीन-ए-इलाही’ को नकार रहे थे। मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी हो, ऐसा नहीं है। यह मंदिर से बिल्कुल अलग है। जो बात कही जा रही है कि यहां कुआं है और उसमें शिवलिंग है, तो यह बात बिल्कुल ग़लत है। 2010 में हमने कुएं की सफ़ाई कराई थी तो वहां ऐसा कुछ भी नहीं था।

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