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ऐसा लगता है कि अपने देश में बाबागिरी से बड़ा और लाभकारी कोई दूसरा बिजनेस नहीं है। यह ऐसा बिजनेस है जिसमें पूंजी निवेश नहीं करना पड़ता और मुनाफा बुलेट ट्रेन की गति से होता है। साइकिल का पंचर लगाने वाले या होटलों में काम करने वाले भी बाबागिरी में आए गए। कुछ ही समय में अरबों-खरबों का साम्राज्य बना लिया। इस साम्राज्य के अलावा लोगों की अंधभक्ति फ्री में मिलती है। अंधभक्ति ऐसी कि बाबा बोल दें तो बाप अपनी बेटी को उनके चरणों में छोड़ दे। बाबा बोले तो भक्त किसी की हत्या कर दें। सड़कों पर आगजनी ही नहीं दंगा कर देते हैं। ऐसे अंधभक्तों की फौज के बल पर ही ये बाबा अपने को सत्ता से ऊपर मान बैठते हैं। लेकिन जब कभी कानून का डंडा इन पर पड़ता है तब इनकी बाबागिरी धरी की धरी रह जाती है। पिछले कुछ वर्षों से एक के बाद एक बाबाओं की बाबागिरी जेल की कोठरी में बंद होती जा रही है।
नए मामले में शनि देव की साढ़े साती से बचने का उपाय बताने दाती महाराज पर ही शनि की साती आ गई है। उन पर उन्हीं की आश्रम की एक लड़की ने शारीरिक शोषण का आरोप लगाया है। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफआईआर  दर्ज कर कार्यवाही शुरू कर दी है। कई दिनों तक गायब रहने के बाद दाती महाराज २० जून को अपने वकील के साथ दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच में पहुंचे। उनसे करीब सात द्घंटे तक पूछताछ चली। उन्होंने इस आरोप को गलत बताया। दाती महाराज ने कुछ लोगों के नाम बताए हैं, जिन्होंने साजिशन उन्हें बदनाम करने की कोशिश की है। लड़की के आरोप में कितनी सच्चाई है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। मगर इसमें कोई दो राय नहीं है कि आसाराम, राम-रहीम, स्वामी नित्यानंद, रामपाल आदि के कुकर्मों के बाद आम लोग हर बाबा को शक की दृष्टि से देखने लगे हैं।
जोधपुर जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे आसाराम १६ साल की लड़की का रेप करने के दोषी हैं। उन्हें २०१३ के मामले में दोषी ठहराया गया। यही नहीं उन पर आशीर्वाद देने के बहाने लड़कियों से छेड़छाड़ और यौन शोषण का आरोप है। उनके बेटे नारायण साईं पर भी ऐसे ही आरोप लगे हैं। कोर्ट में जमानत तक के लिए आसाराम ने देश के सभी बड़े वकीलों को मैदान में उतार दिया था। गुजरात में जमीन हथियाने के भी आरोप इन पर हैं। इनके पास देश और विदेश में ३५० के आस-पास आश्रम हैं। इनके नाम १७,००० बाल संस्कार केंद्र आते हैं। इनकी कुल संपति लगभग ४१३ करोड़ की बताई जाती है।
निर्मल बाबा कभी गोलगप्पे खिलाकर तो कभी काले पर्स जैसे विचित्र तरीकों से लोगों के संकट दूर करने का दावा कर चर्चित हुए। उन पर आर्थिक धोखाधड़ी का आरोप लगा। पुलिस ने उन पर कार्यवाही भी। अपनी मुसीबत पर उनका कोई भी टोटका काम नहीं आया। बताया जाता है कि वे प्रवचनों से लगभग २३८ करोड़ की संपत्ति इकठ्ठा कर चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के समय विवादित तांत्रिक चंद्रा स्वामी काफी पॉपुलर थे। स्वामी का पूरा जीवन विवादों से घिरा रहा। स्वामी पर ईडी ने फेमा के उल्लंद्घन के मामले में ९ करोड़ रुपए की पेनल्टी लगाई थी। लंदन के एक व्यापारी के साथ धोखाधड़ी के मामले में १९९६ में चंद्रास्वामी को गिरफ्तार किया गया था। उनकी मौत हो चुकी है।
खुद को संत मानने वाले रामपाल भी जेल में हैं। हत्या के आरोप में गिरफ्तार रामपाल पर देशद्रोह का भी आरोप है। रामपाल की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने पूरे इलाके को युद्ध का मैदान बना दिया था। रामपाल ने अपने समर्थकों के दिमाग में ये बात बैठा दी कि गुरु की कभी आलोचाना नहीं की जाती। रामपाल की संपत्ति ६०० करोड़ से ऊपर बताई जाती है। कुछ साल पहले तक स्वामी नित्यानंद की गिनती दक्षिण भारत के मशहूर गुरुओं में होती थी। साल २०१० में एक सेक्स सीडी ने उनका सिंहासन हिला दिया। २०१० में नित्यानंद इस मामले में ५२ दिन तक जेल में रहे। इनके पास भी करोड़ों की संपत्ति है।
खुद को भगवान कहने वाले राम रहीम जेल में बंद हैं। हरियाणा की विशेष सीबीआई अदालत ने आश्रम की दो साध्वियों से बलात्कार के मामले में उसे १०-१० साल जेल की सुजा सुनाई है। राम रहीम महिलाओं का अपनी गुफा में रेप किया करता था। सिरसा में इनके पास सैकड़ों एकड़ उपजाऊ जमीन है। इसके अलावा राजस्थान में अस्पताल, गैस स्टेशन, मार्केट कॉम्प्लेक्स और देश के अलग-अलग हिस्सों में कई आश्रम हैं। राम रहीम के पास लगभग ३०० करोड़ रुपए से अधिक की सम्पत्ति है।
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कई बड़े राजनेताओं के आध्यात्मिक गुरु रहे स्वामी सदाचारी को वेश्यालय चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, तो स्वामी प्रेमानंद को १३ लड़कियों से बलात्कार करने का दोषी पाया गया था। साईं बाबा की तरह विभूति निकालने के अलावा वह अपने पेट से शिवलिंग भ्ाी निकालता था। खुद को इच्छाधारी संत कहने वाले स्वामी भीमानंद का असली नाम शिवमूरत द्विवेदी है। ये ‘महाराज चित्रकूट वाले’ के नाम से चर्चित और नागिन डांस के लिए चर्चा में रहते थे। १९९७ में इन पर दिल्ली के एक सेक्स रैकेट में शामिल होने के आरोप लगा और गिरफ्तार हुए। बाबा बनने से पहले वह एक होटल में गार्ड की नौकरी करता था।
आखिर अपने देश में बाबा इतने शक्तिशाली कैसे हो जाते हैं। इस पर कई विद्वानों का मानना है, ‘पौराणिक काल के साधु-संत साधक, तपस्वी और त्यागी थे। उनके व्यक्तित्व का लाभ आज ढोंगी बाबा उठा रहे हैं।’ एक रिपार्ट कहती है, ‘ये ढोंगी बाबा जाति कार्ड भी खेलते हैं। बाबाओं के भक्त किसी न किसी जाति विशेष के हैं। जिनमें पिछड़े, अनुसूचित जाति वर्ग के ज्यादा हैं। जैसे आसाराम  के भक्त सिंधी, पटेल, कुनकी, पिछड़ी जातियों का मध्यवर्ग, नामदेव, बद्घेल, पाटीदार, सिखी, लोध, पटवा, गढ़वी, लोढा. आदि जाति के हैं।
 राम रहीम के पाले में हरियाणा, पंजाब की ज्यादातर कांबोज, कुचेरा, डाकौत, खाती, नाई, तेली, निषाद आदि जाति शामिल हैं। निर्मल बाबा के भक्त पिछड़ी पंजाबी, हिमाचली, हरियाणवी जातियां जो अब नौकरियों, छोटेमोटे व्यापार में आ गई हैं। रामपाल के पास मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड की निचली पिछड़ी जातियों की ताकत है। इन जातियों के बाबाओं के साथ आने के पीछे सामाजिक कारण हैं। भारत की सामाजिक संरचना में पिछड़ी जातियों की जो स्थिति है, उससे ये इन ढोंगियों की शरण में आने को मजबूर होते हैं। क्योंकि इन गुरुओं के पास ये सहज, सुरक्षित महसूस करते हैं।
काका कालेलकर की अध्यक्षता में १९५६ में बने पहले पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में २,३३९ जातियों की पहचान हुई थी। फिर १९७८ के बी पी मंडल आयोग ने ३,७४३ जातियां बताईं जिनकी आबादी कुल जनसंख्या का ५२ प्रतिशत थी। इसके अलावा २२ .५ प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति, जनजातियों की थी। मंडल रिपोर्ट लागू होने के बाद पिछड़ी जातियों की संख्या बढ़ती जा रही है। ये सभी जातियां सामाजिक भेदभाव की शिकार रही हैं।
‘संत ये नहीं, आप कहते हैं’
मातृसदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद महाराज से बातचीत

दाती महाराज, आसाराम, राम रहीम क्या ये लोग संत हैं?
जो इंसान गृहस्थ जीवन जी रहा हो, बाल बच्चेदार हो, एसी घर, एसी गाड़ी होटलनुमा आश्रम में रहता हो, वह साधु-संयासी कैसे हो सकता है। संत तो त्यागी होता है। साधना करता है। वैराग्य, ब्रह्मचर्य, समाज के आदर्श, कम से कम वस्तुओं का सेवन, तप करने वाला होता है। इनमें से कोई एक गुण भी नहीं दिखता। इसलिए ये संत हैं ही नहीं।

फिर वे लोग अपने को संत क्यों कहते हैं?
ये लोग अपने को संत नहीं, इन्हें आप लोग संत कहते हैं। जितने भी पूंजीपति हैं, वे इनकी आड़ में अपना गलत धंधा करते हैं। इनके आश्रमों में सिर्फ और सिर्फ गलत कार्य ही होते हैं।

फिर इनके लाखों-करोड़ों भक्त कैसे हो गए?
भारतवर्ष भेड़ियाधसान वाला देश है। इसमें कोई एक किसी के पीछे चलता है तो सब उनके पीछे-पीछे चल देते हैं। सोचते-विचारते नहीं हैं। इसमें सबसे ज्यादा बुद्धिजीवियों  का दोष है। बुद्धिजीवी संत को संत नहीं समझते और ढोंगियों की पोल नहीं खोल रहे हैं।

क्या कोई ऐसी संस्था या संगठन है, जो इन ढोंगी बाबाओं के कुकर्म पर लगाम लगा सके?
संस्थाएं तो हैं मगर लगाम कौन लगाएगा। क्योंकि उन संस्थाओं में भी ईमानदार व्यक्ति चाहिए। आज ऐसे व्यक्तियों का अभाव है। जो कुछ हैं, वे एकांतवास में रहते हैं। वे ऐसी किसी संस्था में जाना नहीं चाहते।
भारत के संत-संन्यासियों की तप और साधना से आकर्षित होकर विदेशी भी यहां आते हैं। ऐसी घटनाओं से विदेशों में भी भारतीय संस्कृति बदनाम नहीं होगी?
विदेशों से भी दो तरह के भक्त आते हैं। जो साधना के लिए आते हैं, वे एकांत में साधना कर रहे हैं। कुछ धंधा करने आते हैं। वे ऐसे बाबाओं के साथ मिलकर धंधा भी कर रहे हैं। ये भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं मगर वह नष्ट नहीं होगी।

क्या पौराणिक काल में भी साधु-संत ऐसी द्घटना में लिप्त रहते थे?
पहले आप इन्हें साधु-संत न कहें। सभी काल में अच्छाइयां और बुराइयां दोनों रहती हैं। किसी काल में ऐसी घटना नगण्यता में रहती है। आज इसमें बहुलता आ गई है। दूसरा, आप जैसा बीज खेत में डालेंगे, फसल वैसी ही तैयार होगी।

‘अमीर बनने का शॉटर्क रास्ता’
समाजशास्त्री इम्तियाज अहमद से बातचीत

बाबाओं का कुकर्म भारतीय समाज के किस रूप को दिखता है?
समाज समय के साथ अपने में बदलाव करता है। यह उसी बदलाव का नतीजा है। मगर साधु-संतों का कार्य सिर्फ समाज के लिए चिंता करने वाला नहीं है बल्कि भारतीय संस्कृति के लिए भी खतरनाक है। ये कथित संत अपने भक्तों की अंधभक्ति के बल पर ऐसा करने का साहस जुटाते हैं।

बाबाओं में लड़कियों का शोषण और भ्रष्टाचार करने की प्रवृति कैसे आई?
आप इनके बैक ग्राउंड को देखेंगे तो पाएंगे कि ये लोग पहले छोटे-मोटे काम कर रहे थे। किसी ने अध्यात्म की शिक्षा-दीक्षा नहीं ली है। शॉटकर्ट में जल्द अमीर बनने का यह सबसे आसान तरीका है, इसलिए ये बाबा बन गए।

क्या यह प्रवृति पहले भी इनके समाज में थी?
कमोबेश थी। आज घटनाओं के ज्यादा होने के दो कारण हैं। पहला तो ऐसी प्रवृतियां वास्तव में बढ़ी हैं। दूसरा लोगों में जागरूकता आई है। लड़कियां ऐसे मामलों को लेकर अब सामने आ रही हैं।

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