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तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं शीला दीक्षित का स्पष्ट मानना है कि दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी नाकामयाबियों पर पर्दा डालने के लिए उपराज्यपाल और केंद्र सरकार से अनावश्यक टकराव कर रहे हैं। शीला दीक्षित से ‘दि संडे पोस्ट’ के रोविंग एसोसिएट एडिटर गुंजन कुमार की विशेष बातचीत

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपने तीन मंत्रियों के साथ एलजी हाउस में धरने पर बैठे हैं। यह जरूरी है या मजबूरी?
अभी भी बैठे हुए हैं? आश्चर्य होता है। जरूरी तो डेफनेटली नहीं है। उनकी मजबूरी क्या है, यह तो वही जानते होंगे। मेरे जैसे लोगों को लगता है कि वे अपनी नाकामयाबियों और घोटालों से लोगों का ध्यान डायवर्ट कर रहे हैं। यदि कड़क शब्दों में बोलूं तो यह एक तरह से राजनीतिक ड्रामा है।

 

उपराज्यपाल के पास क्या इतनी शक्ति है कि वे दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दें?
यह बिल्कुल गलत है। एलजी (उपराज्यपाल) के पास लैंड यानी डीडीए और दिल्ली पुलिस है। इसके अलावा अन्य विभाग दिल्ली सरकार के पास हैं। मैंने चार-पांच एलजी के साथ काम किया है। एक भी एलजी के साथ न कभी गुस्ताखी हुई न ही कोई काम उन्होंने टाला। आप उन्हें ऐक्सप्लेन कीजिए। दिल्ली के हित में कोई काम होगा तो वे जरूर मानेंगे लेकिन जब आप कॉन्टैक्ट ही नहीं रखेंगे, हमेशा आलोचना करते रहेंगे तो फिर कैसे काम चलेगा। दिल्ली में एलजी की भूमिका उतनी ही है, जितनी यहां के मुख्यमंत्री की है।

राज्यों के राज्यपाल और यहां के उपराज्यपाल की शक्ति में कितना अंतर है?
दोनों की शक्ति में बहुत अंतर है। यहां उपराज्यपाल एक्टिव रोल प्ले करते हैं। राज्यों के राज्यपाल सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। यहां उपराज्यपाल पेपरों पर साइन के अलावा डिसीजन (निर्णय) भी लेते हैं। उनके साथ मिलकर आप कोई भी काम कर सकते हैं या करवा सकते हैं। यदि आपने उनसे असहमति का ही मन बनाया हुआ है तब तो कुछ हो नहीं सकता।

आपके शासनकाल में क्या एलजी ने कोई निर्णय आपकी सहमति के बगैर लिया था?
नहीं। बहुत बार ऐसा हुआ है कि उपराज्यपाल हमसे राय लेते थे। हमारा सिस्टम ऐसा था (सभी एलजी के समय) कि या तो वे हमें बुला लेते थे या मैं उनसे मिलने चली जाती थी। एक-दूसरे को समझा देते थे। या तो वे समझ जाते थे या मैं समझ जाती थी। कभी कोई कॉन्फलिक्ट नहीं था।

मुख्यमंत्री केजरीवाल का कहना है कि नौकरशाह (अधिकारी) हड़ताल पर हैं। क्या यह सही है?
आप मुझे यह बताइये कि मुख्य सचिव को थप्पड़ किसने मारा था। मुख्यमंत्री के द्घर में उनके सामने मुख्य सचिव को थप्पड़ मारा गया। क्या इसके बाद आप आश्चर्य करेंगे कि अधिकारी हड़ताल पर हैं। मुख्यमंत्री ने ही रात के ११-१२ बजे मुख्य सचिव को अपने द्घर बुलाया। फिर उनको थप्पड़ मरवाया। जैसा आप करेंगे, वैसा ही तो आप भुगतेंगे। देखिए, जिस प्रकार मुख्यमंत्री प्रदेश विधायिका के हेड हैं, उसी तरह मुख्य सचिव भी तो प्रदेश में कार्यपालिका के हेड हैं। देश के इतिहास में किसी ने इस प्रकार से सरकार नहीं चलाई है।

पर मुख्य सचिव ने कहा है कि कोई अधिकारी हड़ताल पर नहीं है?
वह सही कह रहे हैं। अभी मेरी बात हुई है। सभी अधिकारी काम कर रहे हैं।

फिर केजरीवाल ऐसा क्यों कह रहे हैं?
यह तो उन्हीं से पूछिए। दिल्ली का मुख्यमंत्री कोई छोटी पोस्ट नहीं है। आप देश की राजधानी के मुख्यमंत्री हैं। आप पर अपने देश की राजधानी को खूबसूरत और विश्व में बेहतर बनाने का जिम्मा है। जिसे आप नहीं कर रहे हैं। सिर्फ झूठ बोल रहे हैं। इन तीन-चार सालों में एक भी नया काम नहीं हुआ है। दिल्ली में जो काम हुआ, हमारे वक्त हुआ। जो काम अधूरा था, उसे पूरा तक नहीं कर पा रहे हैं। सिग्नेचर ब्रिज तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

क्या आपको लगता है कि दिल्ली की नौकरशाही आज दोराहे पर है। वह केंद्र की सुने या दिल्ली सरकार की?
किसी भी प्रदेश (केंद्र शासित प्रदेश सहित) या देश में फैसला वहां की कैबिनेट करती है। यहां भी दिल्ली के हित में कोई भी फैसला कैबिनेट की बैठक में ही होता है। उस निर्णय को जमीन पर अधिकारी लागू करते हैं। जब आप इस सिस्टम को ही बिगाड़ना चाहते हैं। आप अधिकारियों की इंसल्ट करेंगे और फिर कहेंगे कि अधिकारी हमारी सुनते नहीं तो फिर क्या कह सकते हैं। सत्ता में आने के बाद भी आपके पास सिर्फ शिकायत है।

विधानसभा अध्यक्ष का आरोप है कि अधिकारियों को मंत्रियों- विधायकों के सवाल का जवाब देने के लिए विधानसभा बुलाते हैं तब भी वे नहीं आते हैं?
नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। हमारे समय भी तो यही अधिकारी थे। हमारे साथ कभी ऐसा नहीं हुआ। यहां तक कि पुलिस हमारे अंडर नहीं थी, फिर भी जब कभी पुलिस का मामला आता था तो पुलिस भी आ जाती थी। यह निर्भर करता है कि आप किसी को कैसे डील करते हैं। मैंने भी भाजपा के शासनकाल में काम किया है। कभी नहीं लगा कि केंद्र में विपक्ष की सरकार है।

आपके १५ साल के शासनकाल में छह साल केंद्र में भाजपा की सरकार थी। क्या भाजपा विपक्षी सरकार को काम नहीं करने देती?
मैंने कहा न हमें कभी ऐसा एहसास ही नहीं हुआ कि केंद्र में विपक्षी पार्टी की सरकार है। हमारा मेट्रो बीजेपी के शासन में ही आया। हमने उनके समय कई बसें खरीदी। कई अन्य महत्वपूर्ण योजनाएं भाजपा के समय लाए। कभी जरूरत होती थी तो हम जाकर समझाते थे। वे मान जाते थे। देखिए और इस बात को समझिये। केंद्र में जिस किसी की भी सरकार होगी, उसका भी इंटरेस्ट है कि दिल्ली अच्छा लगे क्योंकि सारा डिप्लोमेटिक कोर यहां रहता है। पूरी केंद्र सरकार यहां रहती है। फिर क्यों कोई केंद्र की सरकार चाहेगी कि दिल्ली खूबसूरत न दिखे। सभी चाहते हैं कि दिल्ली विश्व का सबसे खूबसूरत शहर दिखे।

आपको केजरीवाल ने चैलेंज किया है कि आप मोदी सरकार में एक साल सरकार चलाकर दिखा दें?
वो चैलेंज करते रहें। जब कोई चैलेंज पूरा ही नहीं हो सकता तो वे करते रहें।

क्या आप उनका चैलेंज स्वीकार करेंगीं?
देखिए, मैं वो चैलेंज स्वीकार करती हूं जो पॉसिबल है और जो कर सकती हूं। उनके इस चैलेंज को मैं कैसे कर सकती हूं? मैं तो एमएलए भी नहीं हूं। न मेरी पार्टी सत्ता में है। कैसे करूंगी? यह तो किसी का मजाक उड़ाना हुआ। वह हमेशा नॉन सीरियस बातें करते हैं।

उन्होंने विधानसभा में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव पास किया है। आप क्या कहेंगी?
जब मैंने १५ साल यहां काम किया तो मुझे एहसास हुआ है कि यह जरूरी नहीं है। पूर्ण राज्य न होने से किसी काम में कोई हानि नहीं होती है। आप काम को एक तरीके से, कॉपरेशन से करेंगे तो काम आसान हो जाता है। दिल्ली सब की है। यह पूरे हिंदुस्तान की है। यह रिस्पान्ॅसीविलिटी आपको समझनी होगी।

आपने भी दो बार यह प्रस्ताव पास कर केंद्र को भेजा था?
हां, यह सही है। मगर मैंने बोला कि १५ साल यहां सरकार चलाने के बाद समझ में आया कि इसकी जरूरत नहीं है।

आपने कहा कि आपकी कभी एलजी या केंद्र सरकार से टकराहट नहीं हुई। मगर पुलिस कमिश्नर से लेकर एलजी तक से एक-दो विवाद आपके हुए थे?
देखिए, जहां दो लोग निर्णय लेने की स्थिति में हैं तो वहां असहमति अवश्य होगी। चाहे केंद्र में हमारी पार्टी की ही सरकार क्यों न हो। लेकिन जब कभी हमारे साथ ऐसा हुआ तो हम उनके साथ बैठे। उनके सामने अपनी बात रखी। उन्होंने अपनी बात रखी। फिर हल निकल गया। क्या यह तरीका सही नहीं है। आप क्यों नहीं ऐसा कर पा रहे हैं? मतलब आप में कमी है।

क्या एलजी की नियुक्ति आपसे सलाह-मशविरा कर की जाती थी?
हां, ऐसा होता था। जब केंद्र में हमारी सरकार थी तो वे हमसे सलाह-मशविरा करते थे।

भाजपा की सरकार में?
भाजपा के समय पहले से ही यहां एलजी थे। इसलिए सलाह की नौबत नहीं आई।

केजरीवाल सरकार के तीन साल के कार्यकाल पर आप क्या कहेंगी?
मैं क्या कहूंगी। जनता से पूछिए, केजरीवाल ने क्या-क्या किया। सड़कें टूटी पड़ी हैं। जो काम अधूरे थे, वे पूरे नहीं हो रहे। कोई नई योजना नहीं आई है। कभी लगता है कि कुछ छुपाया जा रहा है। एक लोकतांत्रिक सरकार में जो खुलापन होना चाहिए, वह नहीं है। वे कहते हैं कि हमने बिजली का बिल आधा कर दिया। मगर कई लोग कहते हैं कि मेरा बिल तो पहले जैसे ही आ रहा है। पानी की स्थिति आप देख लीजिए। बिजली और पानी यहां दो बेसिक जरूरतें हैं। सरकार ये दोनों चीजें ही नहीं दे पा रही है।

वर्ष २०१५ में कांग्रेस की बुरी हार और आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत का आप क्या कारण मानती हैं?
एक तो हम १५ साल से यहां सत्ता में थे। लोगों ने परिवर्तन करने का मन बनाया था। दूसरा, केजरीवाल की पार्टी उस दौरान संदेश दे रही थी कि वे ये मुफ्त कर देंगे। वो कर देंगे। मगर एक भी चीज नहीं कर पाए, क्योंकि वह अव्यवहारिक था। इसलिए लोगों को लगा कि १५ साल बाद सरकार बदल कर देखते हैं। लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि सरकार बदलने के बाद समय कैसे कटेगा। इस तीन साल में ही दिल्ली के लोग इस सरकार से परेशान हो गए हैं।

उस वक्त केंद्र सरकार पर कई द्घोटालों का आरोप था। क्या उसका भी असर था?
हां, उसका भी थोड़ा असर था क्योंकि मेरे और मेरी सरकार पर करप्शन का कोई आरोप नहीं था।

राष्ट्रमंडल खेल घोटाले में आपकी सरकार का भी नाम था?
वह साफ हो गया था कि उसमें हमारा या हमारी सरकार का कोई रोल नहीं था। वैसे भी राष्ट्रमंडल खेल हमारा नहीं सभी का था। लेकिन सच पूछिए तो मुझे लग रहा था कि मैंने दिल्ली में इतना काम कर दिया है कि जनता हमें ही वोट देगी, पर नतीजा आने के बाद लगा कि ऐसा सोचना मेरी नादानी थी।

कुछ दिनों पहले आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता ने बोला कि कांग्रेस दिल्ली में गठबंधन करना चाहती है। क्या यहां गठबंधन होना चाहिए?
ऐसा कुछ नहीं है। यह तो उनका कहना है। यदि कांग्रेस करना चाहती तो कांग्रेस की ओर से बयान आता। ऐसी तो पार्टी में अनौपचारिक चर्चा भी नहीं हुई है। यह ऑफर आम आदमी पार्टी इसलिए कर रही है, क्योंकि वह घबरा गई है।

२०१९ के लिए जहां मोदी के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट हो रहा है। ऐसे में यहां गठबंधन हो सकता है या नहीं?
यह तो २०१९ में देखा जाएगा। लेकिन इस वक्त ऐसा कोई सवाल ही नहीं उठता है।

वर्ष २०१९ में आप सक्रिय राजनीति में दिखेंगी?
यह अभी नहीं कह सकती। उसमें अभी समय है। पार्टी जैसा चाहेगी, हम वैसा करेंगे।

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