काली ने क्यों बरपाया कहर
कुमाऊं में काली नदी ने जो तबाही मचाई उसके लिए लोग एनएचपीसी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। आपदा पीड़ितों का दो टूक कहना है कि कंपनी ने अपने छिरकिला बांध को टूटने से बचाने के चक्कर में उन्हें डुबा दिया। उस दिन की बारिस से नुकसान की कोई संभावना नहीं थी लेकिन १७ जून को जब कंपनी ने बांध का पानी खाली किया तो अचानक नदी उफान पर आ गई
आप मीडिया वाले आते हो। पीड़ितों का हाल-चाल पूछते हो और कागज काले कर अपनी ड्यूटी भी पूरी कर लेते हो। लेकिन जो परेशानियां हम लोग झेल रहे हैं वे क्यों पैदा हुई यह आपको नहीं दिखाई देता है। क्या आप बतायेंगे कि १७ जून को काली ने हमारे क्षेत्र में इतना विकराल रूप क्यों धारण किया? है आपके पास इसका कोई जवाब?
बाढ़ से तबाह तवाघाट के निवासी कृष्ण सिंह गर्ब्याल के पास इन दर्द भरे सवालों का जवाब भी है लेकिन उनका आक्रोश इस बात को लेकर है कि मीडिया गहराई में जाने की कोशिश नहीं करता है या फिर सच को सामने लाने में दिलचस्पी नहीं लेता है। धारचूला से २० किलोमीटर दूर तवाघाट के निवासी गर्ब्याल बताते हैं १५ और १६ जून को तपोवन से लेकर तवाघाट कंज्योति ऐलागाड़ धारचूला बलुवाकोट और जौलजीबी तक लोगों को इस बात का एहसास नहीं था कि आने वाले दो दिन उनके लिए मुश्किलों भरे साबित होंगे। धारचूला निवासी राकेश तिवारी के अनुसार १८ जून को काली पूरे सैलाब में बहने लगी। देखते ही देखते दोपहर बाद नदी ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू कर दिया। नदी के उस पर नेपाल के दार्चूला में कई-कई मंजिला मकान ताश के पत्तों की तरह ढहने लगे। लोग समझ ही नहीं पा रहे थे कि अचानक इस नदी में इतना पानी कहां से आ गया? अगर पानी का स्तर बढ़ना था तो वह १५ और १६ जून से ही बढ़ जाता क्योंकि बारिस इन दिनों ही हुई थी। ऐसे में यहां कोई नहीं समझ पाया कि आखिर क्या वजह रही कि १७ जून को काली में बाढ़ आई?
जब इस सच्चाई का पता लगाया गया तो एक नई कहानी सामने आई। काली नदी में आई बाढ़ को प्रकूति प्रदत्त कम और मानव जनित ज्यादा कहेंगे। स्थानीय लोगों की मानें तो इस आपदा के लिए धौलीगंगा नदी पर बनी एनएचपीसी की धौलीगंगा विद्युत परियोजना का प्रबंध जिम्मेदार है। जिसने हजारों लोगों की जान की परवाह किए बिना ही बांध का लबालब पानी नदी में छोड़ दिया। इससे काली नदी के वेग में कई गुणा बढ़ोतरी हो गई और उसने तवाघाट से लेकर जौलजीबी ही नहीं बल्कि झूलाघाट तक सैकड़ों लोगों को बेघर कर दिया। कालिका निवासी हेमचंद के मुताबिक 'धौली गंगा पर बने छिरकिला डैम में पानी की मात्रा कम हो रही थी जैसे ही १५ जून को बरसात शुरू हुई तो धौली गंगा जल विद्युत परियोजना के अधिकारियों ने पानी को स्टोरेज करना शुरू कर दिया। अगले दिन भी यही प्रक्रिया जारी रही। लेकिन १७ जून को जैसे ही पानी ज्यादा होने लगा तो डैम से पानी छोड़ा जाने लगा। १७ जून को ही डैम का अधिकतर पानी बाहर कर दिया गया।'
इस आपदा का अंदाजा २८० मेगावाट की धौली गंगा बिजली परियोजना के डैम में पटे मलबे को देखकर भी लगाया जा सकता है। ६५ मीटर ऊंचे इस डैम में करीब ४० मीटर तक मलबा पटा है। डैम को खतरे से बचाने के लिए १७ जून की रात को उसका पानी खाली किया गया। इस छोड़े हुए पानी ने बाढ़ की तीव्रता को बढ़ाने का काम किया। इसका असर नदी घाटी वाले इलाकों में टनकपुर तक रहा। स्थानीय लोगों का कहना है कि १७ जून को आई बाढ़ के बाद धौली गंगा में छिरकिला नामक स्थान पर बने डैम में पानी के साथ ही काफी मलबा भी भर गया था। डैम ओवर फ्लो होने लगा था। उसको टूटने से बचाने के लिए पॉवर प्रोजेक्ट ने १७ जून को दिन भर पानी छोड़ने का काम जारी रखा। स्थानीय लोग बताते हैं कि डैम से करीब एक लाख क्यूसेक से अधिक पानी छोड़ा गया। गोठी निवासी विनोद भट्ट बताते हैं कि अगर डैम को खाली नहीं किया जाता तो उससे भी खतरा उत्पन्न हो सकता था।
यह भी बताना जरूरी है कि धौली गंगा और काली नदी का मिलन तवाघाट में होता है। तवाघाट से छिरकिला करीब ७ किलोमीटर दूर है। तवाघाट के बाद यह काली नदी के नाम से बहती है। सबसे पहले नदी ने तवाघाट को शिकार बनाया। यहां तवाघाट की आधी मार्केट तबाह हो गई। इसके बाद ऐलागाड पर जाकर नदी ने धारचूला-तवाघाट मोटर मार्ग को तहस-नहस किया। याद रहे कि ऐलागाड वही गांव है जहां एनएचपीसी की धौली गंगा विद्युत परियोजना पहले भी कहर बरपा चुकी है। यहां के दो गांव वर्ष २००९ में इस परियोजना के सुरंग में आई दरार का शिकार हो चुके थे। चार साल पहले ऐलातोक और शाकुरी गांव के वाशिंदे इस दंश को झेल चुके हैं। तब एनएचपीसी की टनल के लीकेज से न सिर्फ लोगों के मकान ही ध्वस्त हुए बल्कि उनकी सैकड़ों नाली खेती भी बर्बाद हो गई थी। दो गांवों के लोगों ने तो अपने घर बार छोड़कर दूर-दराज के गांवों में पनाह ली थी। प्रशासन ने लीकेज पर काबू करने का आश्वासन दिया था लेकिन वह अभी भी पूरा नहीं हुआ। आज भी सुरंग की दहशत को ऐलागाड शाकुरी ऐलातोक गांव के साथ ही शाकुरी गसीला खैला गगुर्वा जमुकखेत जुम्मा राथी आदि गांवों के लोगों की आंखों में बखूबी देखा जा सकता है। उस वक्त भी घटना के बाद महीनों तक शासन- प्रशासन और कंपनी प्रबंधन ने लोगों की खैर खबर तक लेना मुनासिब नहीं समझा। आज भी लगभग यही स्थिति बनी हुई है।
वर्तमान में जो हालात हैं उसके लिए काफी हद तक एनएचपीसी की धौलीगंगा पावर परियोजना को जिम्मेदार माना जा रहा है। लोग खुलेआम कह रहे हें कि इस पावर परियोजना से उनका जीवन खतरे में है। १७ जून को काली नदी में जो सैलाब उमड़ा वह कंपनी की अपने प्रोजेक्ट को बचाने की कोशिश के चलते हुआ। इसके चलते ही तवाघाट से लेकर धारचूला बलुवाकोट जौलजीबी ही नहीं झूलाघाट तक प्रलय मचाता पानी किनारों पर बसे लोगों को अपना शिकार बनाता चला गया। वह तो भला हो कुछ सक्रिय लोगों का जिन्होंने काली नदी के किनारे रहने वाले लोगों को बाढ़ के प्रति सचेत कर दिया। फलस्वरूप उन्होंने पहले ही अपने घर छोड़ दिए और सुरक्षित स्थानों पर चले गए।
बात अपनी अपनी
हमारी यह परियोजना उत्तराखण्ड में है इसलिए आप इस बारे में वहीं के अधिकारियों से बात कीजिए। मुझे इस मामले की ज्यादा जानकारी नहीं है।
जे.के. शर्मा. डायरेक्टर एनएचपीसी प्रोजेक्ट मुख्यालय फरीदाबाद
हां यह सही है कि हमारे धौली गंगा डैम में पानी ज्यादा आ गया था। इसको बाहर निकालने के लिए हमने दिशा-निर्देश जारी किए थे। नियमों के तहत ही पानी निकाला गया। मीडिया का ध्यान इस तरफ तो है लेकिन हमारे प्रोजेक्ट को बाढ़ में जो नुकसान हुआ है उसकी तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। पावर हाउस की मशीनों में पानी घुस गया था। इसके कारण हमें २५ करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है।
एस.के. जैन परियोजना महाप्रबंधक
मैं जब बलुवाकोट के आस-पास गांवों का दौरा करने गया तो वहां के लोग कुछ इसी तरह की बातें कर रहे थे। इस मामले में खुलकर बोलने को कोई तैयार नहीं हुआ। लोग अगर कह रहे हैं तो इसमें कुछ न कुछ तो सच्चाई होगी ही। इसकी जांच कराई जानी चाहिए।
हरीश धामी विधायक धारचूला
धौली गंगा पावर प्रोजैकट की लापरवाहियां पहले भी सामने आती रही हैं। एक बार फिर उसके द्वारा बांध का पानी छोड़ा गया। इसके कारण धारचूला क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक गांवों में तबाही का आलम पैदा हुआ है। प्रोजेक्ट कंपनी के खिलाफ क्षेत्र के लोगों में काफी आक्रोश है। अगर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो यह डैम भविष्य में कभी भी बड़ा खतरा बन सकता है।
काशी सिंह ऐरी शीर्ष नेता उक्रांद
यह सच है कि काली नदी छिरकिला डैम से पानी छोड़ने से उफान पर आई। हालांकि अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन कहा जा रहा है कि डैम में दरारें आ चुकी हैं। अगर यह सच है तो बलुवाकोट जौलजीबी और टनकपुर तक कुछ नहीं बचेगा। फिलहाल यह जांच का विषय है कि डैम कितना प्रभावित हुआ है।
जगत मर्तोलिया नेता भाकपा (माले
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