la?k&भाजपा का संबंध पिता&पुत्र जैसा
पूर्व राज्यसभा सदस्य
वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तो एक अद्भुत ही उदाहरण है। चाय बेचने वाले परिवार के ?kj का एक बेटा सालों la?kर्ष कर लोकप्रिय हुआ और इस पद के लिए चुना गया। उन्हें देश के हर समुदाय] जाति] धर्म के लोगों का सामान समर्थन मिला। आज वे देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बन गए हैं। दुनिया के विराट व्यक्तित्व के गणमान्य नेताओं में उनकी गिनती होने लगी है। यह चमत्कार भारत ही दिखा सकता था। भारतीय लोकतंत्र ने या कहें यहां की राजनीति ने कई आरोह और अवरोह देखे हैं। एक ओर पं. नेहरू का एकछत्र लोकतांत्रिक राज था। जिसमें तीन चौथाई बहुमत था। उनके काल में विपक्ष लगभग नगण्य था। इसके बावजूद डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी] पीलू मोदी] राममनोहर लोहिया] जयप्रकाश नारायण] अटल बिहारी वाजपेयी] ज्योति बसु जैसे नेता हुए] जिन्होंने कम संख्या बल होते हुए भी सत्ता की एकतरफा मनमानी को चुनौती दी। यह भारतीय लोकतंत्र का बहुत ही अद्भुत शौष्ठव रहा। पं. नेहरू के बाद लोकतांत्रिक सुनवाई कम होती गई। देहरादून से महावीर त्यागी थे] जब संसद में अक्साई चीन पर बहस हो रही थी। उस बहस में पं नेहरू ने कहा था कि वहां तो एक ?kkl तक भी नहीं उगती है। उनके इस बयान को उनकी ही पार्टी के सांसद महावीर त्यागी ने बड़े सख्त अंदाज में जवाब दिया था। तब उन्होंने कहा था] ^आपके सिर में एक भी बाल नहीं है। तो क्या आपका सिर भी विदेश ले ले और आपको कोई आपत्ति नहीं होगी?^ उनके इस तर्क और सख्त टिप्पणी पर उन्हें दंडित नहीं किया गया
भारत एक दुर्लभ लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का सुंदर रूप है। जिसने तमाम व्यवधानों और शताब्दियों तक राजा& महाराजाओं के शासन में रहने के बावजूद १९४७ में प्राप्त लोकतंत्र को हर पल जिया। यह दुनिया का एक ऐसा अद्भुत उदाहरण है] जिसकी मिसाल कहीं नहीं मिलती। अमेरिका में भी ४०० वर्ष का लोकतंत्र हो गया है मगर वहां आज भी पूर्ण अश्वेत के राष्ट्रपति बनने की संभावना न के बराबर है। चार शताब्दियों बाद वहां आज भी कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनी है। वहां गैर ईसाई के किसी बड़े पद पर आने की संभावना नगण्य से भी कम है। वहां राष्ट्रपति भी बाइबल पर हाथ रखकर शपथ लेते हैं। भारत हिंदु बहुल होने के कारण लोकतंत्रिक बहुलतावाद] संवैधानिक शासन का अद्भुत उदाहरण बना। जहां सत्ता में आने के लिए न किसी का रंग पूछा जाता] न जाति पूछी जाती है। न किसी भाषा] मजहब या धर्म से कोई सरोकार होता है। व्यक्ति अपनी योग्यता और लोकप्रियता के बल पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जैसे किसी पद पर आते हैं।
आजादी के बाद से अब तक इस तरह के कई उदाहरण हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तो एक अद्भुत ही उदाहरण है। चाय बेचने वाले परिवार के ?kj का एक बेटा वर्षों la?kर्ष कर लोकप्रिय हुआ और इस पद के लिए चुना गया। उन्हें देश के हर समुदाय] जाति] धर्म के लोगों का सामान समर्थन मिला। आज वे देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री बन गए हैं। दुनिया के विराट व्यक्तित्व के गणमान्य नेताओं में उनकी गिनती होने लगी है। यह चमत्कार भारत ही दिखा सकता था। भारतीय लोकतंत्र ने या कहें यहां की राजनीति ने कई आरोह और अवरोह देखे हैं। एक ओर पं . नेहरू का एकछत्र लोकतांत्रिक राज था। जिसमें तीन चौथाई बहुमत था। उनके काल में विपक्ष लगभग नगण्य था। इसके बावजूद डॉ . श्यामा प्रसाद मुखर्जी] पीलू मोदी] राममनोहर लोहिया] जयप्रकाश नारायण] अटल बिहारी वाजपेयी] ज्योति बसु जैसे नेता हुए] जिन्होंने कम संख्या बल होते हुए भी सत्ता की एकतरफा मनमानी को चुनौती दी। यह भारतीय लोकतंत्र का बहुत ही अद्भुत शौष्ठव रहा। पं नेहरू के बाद लोकतांत्रिक सुनवाई कम होती गई। देहरादून से महावीर त्यागी थे] जब संसद में अक्साई चीन पर बहस हो रही थी। उस बहस में पं नेहरू ने कहा था कि वहां तो एक ?kkl तक भी नहीं उगती है। उनके इस बयान को उनकी ही पार्टी के सांसद महावीर त्यागी ने बड़े सख्त अंदाज में जवाब दिया था। तब उन्होंने कहा था] ^आपके सिर में एक भी बाल नहीं है। तो क्या आपका सिर भी विदेश ले ले और आपको कोई आपत्ति नहीं होगी?^ उनके इस तर्क और सख्त टिप्पणी पर उन्हें दंडित नहीं किया गया।
सरदार पटेल और पं नेहरू में बहुत मतभेद रहे। फिर भी वे पं नेहरू मंत्रिमंडल के मजबूत सदस्य थे। मतभेद होना लोकतंत्र का ही एक पहलू है। जिसमें अब बहुत गिरावट आई है। एक छत्रराज करने वाली कांग्रेस की अपने भ्रष्टाचार] अपनी जनविरोधी नीतियों के कारण लोकप्रियता द्घटी। कांग्रेस का विभाजन हुआ कांग्रेस ¼ई½ और कांग्रेस संगठन में। स्वतंत्रता आंदोलन वाली कांग्रेस १९६९ में समाप्त हो गई। वह बंट गई। इसके साथ ही एक अद्भुत ज्वार आया। लोगों ने देखा कि राष्ट्रीय पाटर्ी उनकी उभरती हुई आकांक्षाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पा रही हैं। दिल्ली में बैठे राष्ट्रीय दलों के नेता प्रदेशों पर अपना फैसला थोपते हैं। वह जमीनी हकीकतों से जुड़े हुए नहीं होते हैं। ऐसी परिस्थति में ही क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ। उनमें चौ ़चरण सिंह का लोकदल प्रमुख था। उत्तर प्रदेश में पहली संयुक्त विधायक दल की सरकार बनी। जिसमें माधव प्रसाद त्रिपाठी जनla?k से और चौधरी चरण सिंह थे। वह पहला प्रयोग था। गैर कांग्रेस और गठबंधन सरकार का। उस दौर ने जोर पकड़ा। क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व बढ़ने लगा। आज यह अपने चरम पर है। आज अधिकतर राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं। जम्मू& कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी हैं। हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल] पंजाब में अकाली दल] महाराष्ट्र में शिवेसना] तमिलनाडु में डीएमके] एआईएडीएमके] बंगाल में तृणमूल कांग्रेस बिहार में जदयू] राजद] उड़ीसा में बीजू जनता दल] उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा हैं। इनके प्रभाव बढ़ने का मुख्य कारण यही था कि राष्ट्रीय दल स्थानीय लोगों की आकांक्षाओं को अभिव्यक्ति करने में जितने असफल हुए] क्षेत्रीय दल उतने ही मजबूत होते गए।
इस उभार ने एक नए नेतृत्व और राजनीति को भी जन्म दिया। किसान] अध्यापक] पिछड़े वर्ग के लोग] अनुसूचित जाति] जनजाति के लोग] जो बहुधा राष्ट्रीय पार्टियों में स्थान नहीं पाते थे] वे क्षेत्रीय दलों के सर्वेसर्वा बनने लगे। अब पिछड़ा वर्ग की राजनीति ¼मंडल राजनीति½ ने जोर पकड़ा है। इसके दो पहलू हैं। एक जो वर्ग हाशिए पर थे] उसे आगे आने का मौका मिला। वे राजनीति के नियामक और निर्णायक हो गए। वे राजनीति के स्वरूप और कलेवर को बदलने वाले पहलू सिद्ध हुए। उनको उपेक्षित करके चलना संभव नहीं था। लेकिन इसके साथ ही समाज में विखंडन भी शुरू हुआ। इसे आप टुकड़ा&टुकड़ा राजनीति कह सकते हैं। क्षेत्रीय राजनीति में भी धीरे&धीरे गिरावट आने लगी।
भारतीय होने में अब लोग वह गौरव महसूस नहीं करते जितना] ब्राह्मण] ठाकुर] पिछड़ा होने में गौरव महसूस करते हैं। अब प्रगतिशील होने में गौरव नहीं है] अब हर जाति मांग करने लगी है कि हमें पिछड़ा नहीं] महापिछड़ा ?kksf"kr किया जाए] अतिपिछड़ा ?kksf"kr किया जाए। आज पिछड़ा ?kksf"kr होने की प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है। यह प्रतिस्पर्धा हमारे देश को कहां लेकर जाएगी यह सभी समुदाय] जाति] धर्म के नेताओं को सोचना पड़ेगा। इसका दूसरा बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण असर यह हुआ है राजनीति की आंखों में भारत सिकुड़ गया है। इन सबका भारत वहीं सिमट गया है जहां उनका वोट बैंक है। जहां उनका वोट बैंक नहीं है] भारत के उस हिस्से की चिंता उनके एजेंडे में नहीं है। उनके वैधानिक परिधि में ही वह क्षेत्र नहीं आता जहां उनका वोट बैंक नहीं है। संपूर्ण भारत की चिंता करने वाला कौन सा दल होगा? भारत के भविष्य के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे संपूर्ण भारतीय फलक वाले दल अनिवार्य हैं। उन्हें मजबूत होना बहुत अनिवार्य है। यदि संपूर्ण भारत को अपने एजेंडे में रखने वाला दल कमजोर होता है तो भारत की अवधारणा भी कमजोर होती है। भारत क्षेत्रीय दलों के गोंद से चिपकाया हुआ नक्शा बन जाता है। वह गोंद केवल वित्तीय सहायता और राष्ट्रीय कानून होता है। इसलिए राष्ट्रीय दलों को और मजबूती मिलने की जरूरत है। राष्ट्रीय दलों को भी क्षेत्रीय दलों को सम्मान के साथ रखने की मानसिकता रखनी चाहिए।
जब&जब राष्ट्रीय वैचारिक धागे कमजोर हुए हैं] तब&तब केंद्र में गठबंधन सरकार मजबूरी हुई। यह मजबूरी कांग्रेस के कमजोर होने के कारण हुई। कांग्रेस का कमजोर होने का मुख्य कारण भ्रष्टाचार और आपातकाल है। पं नेहरू के समय में तो जीप ?kksVkyk हुआ था। लेकिन इंदिरा के दौर में नागरवाला कांड] एलएन मिश्रा हत्याकांड हुआ। राजीव गांधी के समय बोफोर्स ?kksVkyk हुआ। इन भ्रष्टाचार के अलावा इंदिरा गांधी ने १९७५&७७ में आपातकाल की द्घोषणा की। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हत्या की गई। आपातकाल के खिलाफ विरोधियों की लड़ाई आजादी की दूसरी लड़ाई की संज्ञा पा गया। इसने देश में एक नया नेतृत्व क्षमता वाले नेता पैदा किए। आपातकाल की लड़ाई ने नए नेता क्षितिज में उतारे। जयप्रकाश नारायण] नाना जी देशमुख उनके साथ थे। लालू प्रसाद यादव] नीतीश कुमार] अरुण जेटली] सुशील मोदी] राम विलास पासवान उभर कर आए। आपातकाल की लड़ाई से ही राजनीति] लेखक] पत्रकार आदि की नई पौध निकली। वह भारतीय राजनीति का कीर्ति स्तंभ साबित हुआ।
पिछली सरकार के दस सालों में भारत की स्थिति ऐसी कर दी गई जैसे वह लकवाग्रस्त हो। रोजाना नए&नए द्घोटाले का खुलासा होना] प्रतिदिन नए कांड होना] सरकार का नीतिगत फैसला लेने में लकवा मारना जैसी ?kVukvksa के कारण नरेंद्र मोदी का उभार हुआ। लोगों ने उनमें एक आशा की किरण देखी। इसलिए सभी राजनीति पंडितों के अनुभवों को धता बताते हुए लोगों ने बीजेपी को पूर्ण बहुमत दिया। हालांकि केंद्र में एनडीए गठबंधन की सरकार है] लेकिन लोगों ने एक पार्टी पर पूरा भरोसा जताया। नरेंद्र मोदी के आने के बाद भारत के नीतिगत फैसलों में तेजी आई। सरकार और नौकरशाही क्रियाशील हुई। विश्व मंदी के बावजूद भारत में सबसे ज्यादा निवेश होने लगा। पूरे विश्व में भारत की छवि पराक्रम और मजबूत एवं गतिशील देश के रूप में मान्य होने लगी है। शताब्दियों से गरीबी] अशिक्षा] कुपोषण] अस्वास्थ्य से ग्रसित भारत में बादल अब छंटने लगे हैं। अब कोई भी सत्ता रहे] इस देश के सचेत और जागृत नवजवान इन अंधेरों को सहन नहीं करेंगे। विश्व के क्षितिज पर सुंदर] स्वस्थ] सुरक्षित और समृद्ध भारत का उदय निश्चित है। जो पूरे विश्व में शांति और किसी देश पर सैन्य बल से उपनिवेश नहीं करेगा] ऐसा भरोसा देगा।
अपने देश में भाजपा और कांग्रेस ही मूलतः दो राष्ट्रीय पार्टी हैं। भाजपा पर विपक्षी लोग आरोप लगाते रहे हैं कि यह पार्टी अल्पसंख्यक ¼मुस्लिम½ हितैषी नहीं है। देश की जनता को भाजपा की सच्ची तस्वीर जाननी चाहिए। यह सबको मालूम है कि कांग्रेस अंग्रेजों के जमाने से ही सत्ता के साथ रही है। भाजपा ने राजनीतिक रूप से कांग्रेस के सामने शून्य से शरू किया था। एक सत्ताधारी पार्टी विपक्ष कितना भी कमजोर क्यों न हो] उसकी सही तस्वीर पेश नहीं करेगी। मतलब वह कमजोर से कमजोर विपक्षी को भी पूर्ण नष्ट करने की रणनीति पर काम करती है। जिसके लिए उन्हें गलत तस्वीर और तथ्य रखने होते हैं। कांग्रेस ने शुरू से ही भाजपा की गलत तस्वीर रखी। आजादी से सत्ता में रहने के कारण ज्यादातर लेखक] इतिहासकार सत्ता से प्रभावित होते रहे और इतिहास को सरकार के मुताबिक रचते रहे। कांग्रेस ने उन्हीें लेखकों के सहारे भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी ?kksf"kr कर दिया। इसके बावजूद भाजपा लगातार la?kर्ष करते हुए] सत्ता के खिलाफ लड़ते हुए आज दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई है। जहां तक मुस्लिमों का सवाल है] एक राजनीतिक दृष्टि से तो यह सत्य है कि मुस्लिम वोट बैंक हमेशा एक तरफ नहीं रहा। एक समय था जब उसने लगातार कांग्रेस को वोट दिया। लेकिन कांग्रेस से भी वह खिन्न हो गए। कांग्रेस ने एकाध मुस्लिमों को कैबिनेट का दर्जा दिया। इसके अलावा कांग्रेस ने मूल रूप से मुस्लिमों को विकास या उनके युवाओं को रोजगार से नहीं जोड़ा। उन्हें आधुनिक शिक्षातंत्र से कभी जोड़ने का प्रयास नहीं किया।
राजेंद्र सच्चर कमेटी को यदि सही भी मान लें तो उसमें मुस्लिमों के पिछड़ेपन का जो खाका है] उसके लिए कांग्रेस ही जिम्मेदार है। आखिर तमाम वर्षों में कांग्रेस का ही शासन रहा। मुस्लिम अनेक पहलुओं से प्रभावित होते हैं। और वह एकजुट वोट करने के आदी हैं। उनके मन में कांग्रेस ने बिठा दिया कि भाजपा] जनla?k] la?k मुस्लिम विरोधी हैं। इसका प्रभाव लंबे समय तक रहा। धीरे&धीरे कांग्रेस की यह मनगढ़ंत हवा टूट रही है।
la?k और भाजपा के संबंधों के बारे में भी कई बार बहुत कुछ कहा जाता है। यह देश की जनता को समझना चाहिए कि la?k और भाजपा का संबंध एक पिता और पुत्र के संबंध जैसा ही है। la?k की विचारधारा भारतीय जनता पार्टी का आदर्श और हमारी प्रेरणा है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक la?k संगठन से ज्यादा एक वैचारिक आंदोलन है। जो १९२५ में डॉ केशवराज हेडगेवार ने शुरू किया था। उनका एक मात्र मकसद था] भारत का परम वैभव। वह परम वैभव तब तक संभव नहीं है] जब तक कि भारत में रहने वाले सभी लोग चाहे वह किसी भी मजहब] जाति] संप्रदाय या विचारधारा के हों] समृद्ध न हों] उनकी खुशहाली न हो और विकास न हो। la?k के परम वैभव की कल्पना में भारत के हरेक नागरिक का समावेश है। इन भावनाओं को लेकर la?k काम करता है। la?k के लोगों ने भारतीय स्वतंत्रता की लड़ाई में अंग्रेजों से la?kर्ष किया। कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग करने में ४४ वर्ष लगाए थे। १८८५ में कांग्रेस का गठन हुआ। उन्होंने १९२९ में पूर्ण स्वराज की मांग की। इस ४४ साल तक कांग्रेस अंग्र्रेज का शासन चाहती थी। डोमिनियन रिपब्लिक की कल्पना थी। ब्रिटिश आधिपत्य में ही भारत में अपना एक राज्य हो जाए] ऐसी सोच रखते थे। कांग्रेस ने अपने प्रस्तावों में अंग्रेजों के राज्य को प्रोविडेंशियल गिफ्ट तक कहा। यानी यह तो दिव्य उपहार है। १९२९ में कांग्रेस के इस पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव का la?k ने समर्थन किया। और डॉ .हेडगेवार अनुशीलन समिति का सदस्य बनकर क्रांतिकारियों के साथ अधिकारियों की बैठक में हिस्सा लेने गए कोलकाता] तब के कलकत्ता गए थे। डॉ . हेडगेवार को अंग्रेजों ने कई बार गिरफ्तार भी किया। उनके खिलाफ वारंट भी निकाले। सुभाष चंद्र बोस डॉ .हेडगेवार से सलाह करने के लिए नागपुर आए थे। इस देश में राष्ट्रीयता का] संस्कूति और सभ्यता का मूल मिट नहीं सके] ¼अंग्रेजों के सैकड़ों साल की गुलामी के कारण½ इसलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक la?k ने भारत की मूल आत्मा बनकर समाज को संगठित करना शुरू किया। किसानों&मजदूरों और छात्रों को संगठित करने का काम la?k ने किया। १९४७ में आजादी के बाद सदन में देखा गया कि एक प्रबल वामपंथी प्रभाव के कारण पं नेहरू की सरकार राष्ट्रीयता और हिंदू भावना के विरोध में केवल अकेले बात करती है] और उनका जवाब देने के लिए कोई नहीं होता तो डॉ . श्यामा प्रसाद मुखर्जी ¼जो तब हिंदू महासभा के थे।½ राष्ट्रीय la?k सेवक la?k के द्वितीय सर la?kचालक गुरुजी गोलवलकर के पास आए थे। उन्होंने la?k का समर्थन लेना स्वीकार किया। तब भारतीय जनla?k की स्थापना हुई। भारतीय जन la?k में राष्ट्रीय स्वयं सेवक la?k के दीनदयाल उपाध्याय] अटल बिहारी वाजपेयी] लालकूष्ण आडवाणी] सुंदर सिंह भंडारी] नानाजी देशमुख] जगदीश प्रसाद माथुर ¼ये स्वयं सेवक la?k प्रचारक थे½ इन्हें राजनीति में राष्ट्रीयता का भाव पैदा करने के लिए जनla?k में भेजा गया। वही विचारधारा सबको साथ में लेकर राष्ट्रीयता के नाम देश को आगे बढ़ाने के लिए जनla?k चला। जनता पार्टी में जनla?k शामिल हुआ। १९८० में जनता पार्टी टूटी। उस समय मधुलिमये] मधु दंडवते जैसे नेताओं ने
दोहरी सदस्यता का मामला उठाया था। तब हमने ?kksf"kr किया था कि चाहे कुछ भी हो जाए] la?k से हम वैचारिक संबंध नहीं तोड़ेंगे। इस बिंदु पर ही भारतीय जनता पार्टी का ६ अप्रैल १९८० को जन्म हुआ। हमारा ¼भारतीय जनता पार्टी½ और la?k का वैचारिक संबंध है। एक आदर्शवाद का संबंध है।
कांग्रेस ने अपने लेखकों और वामपंथी साथियों ने इतिहास को अपने ढंग से खूब लिखा। फिर भी कई इतिहास के पन्नों में हमारा इतिहास दर्ज है। उसे कोई कांग्रेस और वामपंथी झुठला नहीं सकते। इतिहास में यह दर्ज है कि कांग्रेस की स्थापना एक ब्रिटिश ने की। तभी तो पूर्ण स्वराज की मांग करने में कांग्रेस पार्टी को ४४ साल लग गए। भारतीय कम्म्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेजों की जासूसी करने के लिए कांग्रेस में द्घुसपैठ शुरू की। १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन को तोड़ने के लिए कम्युनिस्टों ने अंग्रेजों का साथ दिया। कम्प्युनिस्ट अंग्रेजों के एजेंट के रूप में कांग्रेस में शामिल हुए। राज थापर प्रखर कम्युनिस्ट रहे हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ^ऑल दीज डेज^ में लिखा है कि जिन्ना को भारत विभाजन करने के लिए जो भी सामग्री थी एम्युनेशन थे] वह कम्युनिस्टों ने उपलब्ध कराया। भारत को तोड़ने के लिए] कांग्रेस को तोड़ने के लिए कम्युनिस्ट ने अंग्रजों की दलाली की। सुभाष चंद्र बोस को कम्युनिस्टों ने ^दोजो का कुत्ता^ कहा। कम्युनिस्ट पार्टी के मुख पत्रों में इस तरह के कई लेख और कॉर्टून प्रकाशित हुए हैं वह सभी मेरे पास उपलब्ध हैं। मैं वह किसी को भी दिखा सकता हूं। कम्युनिस्ट किस मुंह से la?k पर आरोप लगा सकते हैं। la?k पर सवाल करने का अधिकार तक उन्हें नहीं है।
la?k की स्थापना १९२५ में हुई। उनका प्रारंभिक उद्देश्य ही था] अपनी विचारधारा और संगठन को मजबूत करना। la?k ने अपने स्थापना वर्ष में ही ^मातृभूमि स्वतंत्रते] स्वतंत्रते मातृभूमि^ कह दिया था। la?k ने स्वराज की मांग करने में ४४ साल नहीं लगाए थे। डॉ . हेडगेवार ने १९२९ में कांग्रेस के पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव का la?k द्वारा प्रस्ताव पारित कर समर्थन किया। वह बचपन से ही स्वतंत्रता सेनानी थे। वह नील हाईस्कूल में पढ़ाई करते थे। समीप की पहाड़ी पर यूनियन जैक लगा रहता था] इसको उतार कर डॉ . हेडगेवार ने तब अपने देश का ¼कांग्रेस का झंडा½ चरखा वाला झंडा फहराया जिसके चलते उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। la?k की स्थापना के बाद डॉ . हेडगेवार कलकत्ता गए। वहां वे अनुशीलन समिति के सदस्य बने। उनके विभिन्न कार्यक्रमों को देखते हुए अंग्रेजों ने डॉ . हेडगेवार को स्वतंत्रता सेनानी अपराधी ?kksf"kr किया। हजारों स्वयं सेवक स्वतंत्रता आंदोलन के कारण जेल गए थे। उनमें हमारे पिता भी शामिल थे। यहां तक कि आजादी के बाद भी १९६२ भारत&चीन युद्ध के समय पं नेहरू कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं को देश द्रोह के अपराध में गिरफ्तार किए थे। la?k को देशभक्ति के सम्मान में १९६३ के गणतंत्र दिवस पैरेड में पूर्ण गणवेष में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया था। इससे कम्युनिस्ट और la?k की देशभक्ति का अंतर स्पष्ट होता है।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद देश में ऐसा वातावरण बनाया गया जिसमें la?k की संलिप्तता प्रचारित की गई। चूंकि la?k का प्रारंभ महाराष्ट्र से हुआ। वहां ब्राह्मण विरोधी भाव बहुत तीव्र रहता था। वह भी एक कारण था la?k के खिलाफ माहौल बनाने में। जिस कारण सरदार पटेल ने la?k पर बैन लगाया था। मगर जब कुछ दिनों बाद स्थिति स्पष्ट हुई। अदालत ने भी माना कि महात्मा गांधी की हत्या में la?k की संलिप्तता नहीं है। तब पं नेहरू ने ही la?k को देशभक्त संगठन कहा। la?k के प्रातः स्मरण में करोड़ों स्वयं सेवक प्रतिदिन गाते हैं। उसमें महात्मा गांधी को प्रातः स्मरणीय नेता के रूप में पूज्य माना गया है। नाथूराम गोडसे ने इस देश का बहुत बड़ा अहित किया। इतना बड़ा अहित किया] जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। वे पूरे भारत के लिए ऐसा बोझा छोड़ गए] जिससे क्षोभ और आक्रोश पैदा होता है। महात्मा गांधी की नीतियों से मतभेद के बावजूद वे भारत के सर्वश्रेष्ठ परिचय और सर्वश्रेष्ठ प्रतीक हैं। आज दुनिया में भारत का कहीं सम्मान यदि है तो वह महात्मा गांधी के कारण है। गोडसे एक अतिभ्रमित] भारत हित विरोधी थे। आज भी यदि गोडसे के समर्थन में कोई बोलता है] तो मैं यही कहूंगा कि वह भारत का हित नहीं चाहता। उसके मन में भारतीयता नहीं है। ऐसे लोगों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई होनी ही चाहिए।
la?k १९४७ की आजादी को अधूरी आजादी मानता है। वह इसलिए क्योंकि सांस्कूतिक उपनिवेश हमारे मानस पर अभी भी है। अंग्रेज तो चले गए लेकिन अंग्रेजियत का बोल बाला अभी बाकी है। औपनिवेशिक दास मानसिकता का असर है। वह हमें जेएनयू में देश विरोधी नारे के रूप में आज भी दिखता है। भारत छोटा हो गया और भारत पर हमला करने वाले बड़े हो गए। यह औपनिवेशक दास मानसिकता जब तक रहेगी तब तक आजादी अधूरी है। हमें १९४७ में राजनीतिक और भौतिक आजादी मिली] लेकिन हमारे मानसिक परिवेश से गुलामी का खंडहर खत्म होना बाकी है। सांस्कूतिक आजादी अभी बाकी है। भारत के प्रति भक्ति ही हमारी नजर में राष्ट्रवाद है। देश सर्वोच्च है। मेरे देवता] आस्था और विश्वास उसके बाद हैं। यदि हमारा राष्ट्र है तो मेरे देवता] मेरी आस्था और विश्वास भी हैं। अपने देश को सर्वोच्च स्थान पर सुखी शांतिपूर्ण रहने की आकांक्षा करना और उसके लिए अपना प्रयास करना] मेरे लिए राष्ट्रवाद है। |