उपेक्षित गुमदेश की गुहार
सीमांत गुमदेश तक पहुंचने से पहले ही विकास की किरणें गायब हो जाती हैं। लोग अपने हक में आवाज बुलंद करते रहते हैं। लेकिन उनकी आवाज देहरादून तक नहीं पहुंच पाती
चंपावत जनपद के गुमदेश एवं तल्ला देश की स्थितियां बताती हैं कि सरकारें सिर्फ द्घोषणाओं व लोगों को बेवकूफ बनाने तक सीमित रहती हैं। जिन जनप्रतिनिधियों को जनता चुनती है उनके पास जनता को देने के लिए आश्वासनों के सिवाय कुछ नहीं है। जनप्रतिधियों को राजधानी के बजाय क्षेत्र में अधिक समय बिताना चाहिए ताकि वह लोगों की तकलीपफों को महसूस कर सकें।
जगदीश जोशी] सामाजिक कार्यकर्ता] चंपावत
गुमदेश यानी एक ऐसा क्षेत्र जो आज भी विकास की रोशनी से वंचित है। सरकारी विकास की किरणें यहां आने से पहले ही अस्त हो जाती हैं। राजधानी एवं जिला मुख्यालयों से निकला विकास यहां आते-आते न जाने कहां गुम हो जाता है। विकास से वंचित गुमदेश अपने नाम को चरितार्थ करता नजर आता है। आजादी के सात दशक में भी शासन- प्रशासन गुमदेश क्षेत्र में बिजली] पानी] सड़क स्वास्थ्य] शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं पहुंचा पाने में विफल साबित रहा है। इसके चलते क्षेत्र के गांवों से लोगों की लगातार निकासी हो रही है। भारतीय किक्रेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी का पैतृक गांव चमदेवल भी इसी गुमदेश क्षेत्र में पड़ता है। धोनी के गांव वालों को उम्मीद थी कि शायद धोनी के नाम से ही सही क्षेत्र का विकास हो जाए। लेकिन उनकी यह उम्मीद पूरी होती नहीं दिखती।
जनपद चंपावत के नेपाल सीमा से सटे गुमदेश] सिलिंग] मझेड़ा] कपलेख] रौंसाल] खेतीगाड़ भनार] नाग] पलोप] टारकूली] हयाली] अखेड़ी जैसे गांव लगातार खाली हो रहे हैं। इस क्षेत्र की ४४ ग्राम पंचायतों को आज भी बुनियादी सुविधाओं की दरकार है। २२ क्षेत्र पंचायतों में बंटे इस क्षेत्र की करीब ५० हजार की आबादी बुनियादी सुविधाओं की मांग करते-करते थक गई है। १२ पटवारी क्षेत्र व ९७ राजस्व गांव में बंटे इस क्षेत्र की जनता आए दिन विकास को लेकर आंदोलित होती रही है। लेकिन इतनी बड़ी आबादी की आवाज ७० सदस्यीय विधानसभा के समक्ष नक्कारखाने में तूती साबित होती रही है। आज भी चौपता] बसकूनी] जाख] जिंदी] खटकूनी] कोटला] गरम] मोड़ा] मड़] थाइकोट सहित एक दर्जन से अधिक गांव सड़क मार्ग से वंचित हैं। नवीनपुल्ला] मड़या] गैड़ा कोटला सहित कई गांवों को बिजली की दरकार है। २० हजार से अधिक की आबादी पुलहिंडोला स्थित उप प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर निर्भर है। जहां पहुंचने के लिए जनता को १८ किमी से अधिक दूरी तय करनी पड़ती है। इसके बाद भी उसे स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पाता।
गुमदेश क्षेत्र फल उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा है। यहां के संतरों की मिठास की मांग महानगरों तक है। लेकिन सड़क एवं बाजार सुविधा न होने से फल उत्पादकों की मेहनत पर पानी फिर जाता है। उन्हें अपने उत्पादों का वाजिब मूल्य भी नहीं मिल पाता। स्वास्थ्य] शिक्षा] पेयजल सहित तमाम बुनियादी सुविधाओं से अलग- थलग होने के चलते इस इलाके के दिगालीचौड] मडलक] रौसाल] डुंगराबोरा] मंगोली] खिलपती] खतेड़ा] दुदपोखरा] चौपता] जाख एवं पुल्ला पट्टी आदि गांवों के लोग शासन-प्रशासन से बेहद नाराज दिखते हैं। जनपद चंपावत के गुमदेश क्षेत्र की जनता ही नहीं बल्कि नेपाल सीमा से लगे तल्लादेश की जनता मोबाइल टावर] स्वीकूत उप तहसील के का भवन निर्माण] सड़क मार्ग] सड़कों में डामरीकरण करने] तामली एवं मंच क्षेत्र में पेयजल एवं सिंचाई नलकूप लगाने] क्षतिग्रस्त विद्युत लाइनों को ठीक करने] विद्युतीकरण से छूट गए तोकों में विद्युत लाइन बिछाने] भंडारबोरा क्षेत्र को फल पट्टी के रूप में विकसित करने] स्वास्थ्य केंद्रों एवं उप केंद्रों में स्टाफ की तैनाती करने] विद्यालयों में स्टाफ की नियुक्ति करने को लेकर लगातार आंदोलित रही है।
चंपावत के इस तल्ला देश क्षेत्र में लगभग २५ से अधिक ग्राम पंचायतें आती हैं। यहां की जनता शासन-प्रशासन पर विकास की उपेक्षा का आरोप लगाती रही है। चंपावत-मंच-तामली रोड में हुए हॉटमिक्स में गुणवत्ता को लेकर भी लोगों में गुस्सा व्याप्त है। सीमांत क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि उनके क्षेत्र में १०८ एंबुलेंस सेवा शुरू हो। पॉलीटेक्निक कॉलेज खोला जाए। झाड़-फूंक पर आधरित स्वास्थ्य व्यवस्था की निर्भरता को खत्म करने के लिए आधुनिक सुविधाओं युक्त अस्पतालों का निर्माण हो। डोली के सहारे टिकी यातायात व्यवस्था को बदलने के लिए सड़कों का निर्माण हो। ऊबड़- खाबड़ रास्तों पर बेहतर सीसी मार्ग बने। इस तत्ला देश का हाल यह है कि यहां लेटी] तामली] गढ़मुक्तेश्वर] गुरूखोली] बसौटी] मंच] तरकूली] बकोड़ा] ऊरी] रायल सहित १२ से अधिक ग्राम पंचायत सड़कों से विहीन हैं। इन गांवों को सड़कों से जोड़ने के लिए द्घोषणाएं तो हुई लेकिन जमीन पर काम नहीं हुआ। इस क्षेत्र के लोग संचार सुविधा से भी वंचित हैं। खटगिड़ी] ग्वानी] आमड़ा] ब्यूरी] हरतोला] भेड़ागाड़] सीम] चूका] बसौटी] भंडार] सेरा] बकुंडा] ग्वानी] खेत सहित कई गांव आज भी अंधेरे में जीने को विवश हैं। पूर्व में तल्लादेश विकास महापंचायत जिला मुख्यालय पर बिजली] पानी] सड़क] स्वास्थ्य आदि बुनियादी सुविधाओं को लेकर प्रदर्शन भी कर चुकी है।
स्टेडियम का इंतजार
सुमित जोशी
वर्ष २००४ में तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने मिनी स्टेडियम की जो ?kks"k.kkकी थी वह आज तक परवान नहीं चढ़ पाई
गगढ़वाल-कुमाऊं के प्रवेश द्वार रामनगर से हर वर्ष कई खेल प्रतिभाएं निकलती हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी क्षेत्र का नाम रोशन कर रहीं हैं। लेकिन उन्हें नियमित अभ्यास के लिए मैदान की सुविधा तक नहीं है। युवा और खेल प्रेमी करीब दस साल पहले हुई स्टेडियम की ?kks"k.kkपर अमल होने का आज भी इंतजार कर रहे हैं।
वर्ष २००४-०५ में तत्कालीन सीएम और रामनगर के स्थानीय विधायक नारायण दत्त तिवारी ने रामनगर के कानिया गांव में मिनी स्टेडियम की स्वीकूति प्रदान की थी। जिसके लिए भूमि भी चयनित हो गई थी। लेकिन तिवारी की वह ?kks"k.kkपरवान नहीं चढ़ पायी। बाद की सरकारों ने भी इस पर गौर नहीं किया। वर्ष २०१२ में राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई। तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा ने रामनगर में एक कार्यक्रम के दौरान एक बार फिर मिनी स्टेडियम बनाने की ?kks"k.kkकर सियासी दांव खेलने का प्रयास किया। लेकिन राज्य में आई आपदा के बाद उनको सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी। सीएम बदलने के साथ ही यह ?kks"k.kkभी राजनीति की भेंट चढ़ गईं।
दरसल रामनगर के कानिया में भारत सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा संचालित ईएसटीसी प्रशिक्षण केंद्र और राज्य सरकार के आईटीआई संस्थान के पास प्रेम विद्यालय] ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) की ५० बीद्घा भूमि थी। जो कि प्रेम विद्यालय को दान में दी गई थी। लंबे समय से खाली पड़ी इस भूमि पर स्थानीय जनता और जनप्रतिनिधियों के प्रयासों के बाद प्रेम विद्यालय ने यह भूमि स्टेडियम बनाने के आश्वासन पर सरकार को दान कर दी। जिस पर स्थानीय जनता की मांग पर तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने रामनगर के कानिया की इस भूमि को स्टेडियम के रूप में विकसित करने की स्वीकूति प्रदान कर दी। जिसके बाद शासन ने यह भूमि युवा कल्याण विभाग को हस्तांतरित कर दी। जिसके बाद युवा कल्याण विभाग को इस भूमि पर स्टेडियम का निर्माण करना था। लेकिन इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी स्टेडियम की फाइल महज ?kks"k.kk और स्वीकूति से आगे नहीं बढ़ सकी। अब युवा कल्याण विभाग का कहना है कि शासन से बजट की कमी आड़े आ रही है] जिससे स्टेडियम का निर्माण कार्य रुका हुआ है। वहीं करोड़ों रुपयों की इस बेशकीमती जमीन पर कोई निर्माण नहीं होना कई सवाल खडे़ करता है।
पूर्व सीएम एनडी तिवारी के समय में स्वीकूत हुआ यह मिनी स्टेडियम कई मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देख चुका है। लेकिन आज तक स्टेडियम के नाम से एक ईंट नहीं रखी गई। जहां क्रिकेट] फुटबॉल और एथलेटिक्स खेलों के लिए मैदान का अभाव है तो वहीं इनडोर खेलों के लिए भी कोई स्थान उपलब्ध नहीं है। खेल प्रेमियों की मांग पर जिला प्रशासन ने २०१३ में रामनगर के पीएनजी कॉलेज के खेल मैदान में खाली पड़ी भूमि पर बहुउद्देश्यीय भवन बनाने का कार्य प्रारंभ किया। जिसके लिए लोनिवि को कार्यदायी संस्था चुना। लेकिन सरकारी तंत्र के लचर रवैये के चलते तीन साल का समय गुजर जाने बाद भी बहुउद्देश्यीय भवन नहीं बन सका है। ५५ लाख रुपये की लागत से बनने वाले इस भवन में वुडन फ्लोर के दो बैडमिंटन कोर्ट और व्यायामशाला का निर्माण होना था। इस भवन के बनने से उम्मीद थी कि यह स्थानीय प्रतिभाओं को तराशने के लिए मील का पत्थर साबित होगा। लेकिन अभी तक इसका काम पूरा नहीं हो सका है। भवन की छत का लिंटर न पड़ने से भवन को क्षति पहुंच रही है। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि भवन के निर्माण में बजट का अभाव रोड़ा बन रहा है।
लखनपुर स्पोर्टस क्लब के फुटबाल कोच जितेंद्र बिष्ट बताते हैं कि रामनगर में खेल के प्रति युवाओं की रुचि है। हर खेल की प्रतिभाएं यहां मौजूद हैं लेकिन उनके लिए यहां मैदान तक नहीं हैं। बॉक्सिंग कोच नंदन नेगी का कहना है कि इंडोर खेलों के लिए अच्छी व्यवस्था न होने के कारण खुले आसमान के नीचे खेलों का अभ्यास कराना जोखिम भरा रहता है। इंडोर खेलों के लिए स्टेडियम की मांग होती रही है। लेकिन सरकार द्वारा इस तरफ ध्यान न देना चिंता विषय बना हुआ है। क्रिकेट एकेडमी के कोच गजेंद्र रावत का कहना है कि रामनगर में खेलों के लिए एक सेपरेट मैदान होना आवश्यक है। अभी जो मैदान है वहां हर प्रकार की गतिविधियां के होने के कारण वह उचित नहीं है। रामनगर से प्रत्येक वर्ष क्रिकेट के लिए राष्ट्रीय स्तर तक युवाओं का चयन होता है लेकिन स्टेट बोर्ड न होना उनकी योग्यता को तराशने में सबसे बड़ा रोड़ा है। |