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आपदा और विषम आर्थिक हालात लखपत राणा के लिए निरंतर चुनौती बनते रहे। वह न सिर्फ इनसे लड़े बल्कि उन्होंने लोगों को पलायन का मुकाबला करने और लोक संस्कृति के संवर्धन की प्रेरणा भी दी

रुद्रप्रयाग जनपद के कालीमठ गांव में स्व. मुकंदी सिंह राणा एवं श्रीमती यशोदा देवी के द्घर सन्‌ १९७६ में एक बालक का जन्म हुआ। लखपत सिंह राणा नामक वह बालक आज ऐसे शख्स है। जो शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में मिसाल बन चुके हैं लखपत अपने दो भाइयों व एक बहन में सबसे बड़े हैं। जब वे छोटे थे तब जैसे&तैसे खेती और मजदूरी से परिवार का भरण पोषण होता था। आर्थिक स्थिति सही न होने पर इनके पिताजी ने कालीमठ मंदिर के पास एक चाय की दुकान खोली। बचपन में ही अपने पिताजी के साथ इन्होंने भी दुकान के कार्यों में भी हाथ बांटना शुरू किया। साथ ही पढ़ाई भी जारी रखी। कई बार अपने आप पिताजी की इच्छा के विरुद्ध मजदूरी की। रेत&बजरी] ईटें ढोने का भी काम किया। वे चाय व खाने की दुकान में भी हमेशा हाथ बंटाते रहे। उनके परिवार ने खेती कम होने के कारण ४ किमी दूर अपने पंडितों के गांव ह्यूण में कई वर्षों तक खेती भी की। श्रीनगर में कॉलेज जीवन से ही लखपत ट्यूशन पढ़ाकर अपना व अपने भाई&बहन का खर्चा निकालते थे। इनके पिताजी अपनी छोटी सी दुकान में हमेशा भूखे] जरूरतमंद आदि को भोजन एवं सहारा देते थे। यही नहीं उन्होंने अपनी भूमि विद्यालय] एएनएम सेंटर एवं साधन सहकारी समिति के लिए दान दी] जबकि इनके पास बहुत कम जमीन थी। एक बार इनकी दुकान में आग लग गई। पूरी दुकान जलकर राख हो गई थी। इस द्घटना से उबरे ही थे कि १९९८ में मद्महेश्वर द्घाटी में हुये भारी भूस्खलन में इनका सम्पूर्ण द्घर] पशु एवं जमीन सब कुछ तबाह हो गया। पूरे परिवार ने कालीमठ छोड़ गुप्तकाशी में सिंलोजा माता के मंदिर की धर्मशाला में शरण ली थी।

इसके बाद लखपत ने हरियाणा के कुरुक्षेत्र और कैथल में अनेक विद्यालयों व कोचिंग सेंटरों में २००४ तक अध्यापन कार्य किया। इस दौरान जीवन के कई उतार&चढ़ाव को पार करते हुए एक बार कुरुक्षेत्र में अध्यापन कार्य छोड़कर मजदूरी करने भी गये] परंतु कोई काम नहीं मिला। फिर एक दुकानदार के साथ स्टेशनरी के सामान की साइकिल पर फेरी लगाई। लेकिन पढ़ाने की इच्छा से इन कामों में मन नहीं लगा। फिर से ट्यूशन पढ़ाया और एक विद्यालय में अध्यापन कार्य शुरू किया।

जुलाई २००४ में अपने पिताजी की सलाह पर वापस द्घर लौटकर उकृष्ट शिक्षा के लिए कार्य करने का मन बनाया। कुरुक्षेत्र हरियाणा को छोड़ गुप्तकाशी में विद्यालय की स्थापना की। इस फैसले ने इनके जीवन की दिशा और दशा बदल कर रख दी क्योंकि गुप्तकाशी में संचालित इनका डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल आज केदारद्घाटी ही नहीं बल्कि पूरे उत्तराखण्ड से लेकर देश के कोने&कोने तक लोगों के मध्य अपनी अलग पहचान बनाने में सफल सिद्ध हुआ है। बात चाहे गुणवत्तापरक शिक्षा को लेकर हो]  लोक संस्कृति को संजोने के अभिनव प्रयास की हो या फिर सृजनात्मक गतिविधियों की] विगत १४ सालों में शिक्षा के इस मंदिर ने नये आयाम स्थापित किये हैं। विद्यालय के ३५ से अधिक छात्रों का चयन नवोदय और सैनिक स्कूल द्घोडाखाल के लिए हो चुका है। खेलकूद प्रतियोगिता से लेकर सांस्कृतिक गतिविधियों में दर्जनों छात्रों ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया है। ठेट पहाड़ में विषम परिस्थितियों में संचालित इस स्कूल ने न केवल गुणवत्तापरक शिक्षा मुहैया करवाई है] अपितु शिक्षा के लिए पहाड़ों से हो रहे पलायन को रोकने में भी अहम भूमिका निभाई।

लखपत राणा का विद्यार्थी जीवन से ही अपनी संस्कृति और रंगमंच से इनका गहरा लगाव रहा है। रामलीला से लेकर दशहरा] पाण्डव नृत्य] बगड्वाल नृत्य] नंदा की कथा] सुमाड़ी कू पंथ्या दादा] चक्रव्यूह] कमलव्यूह] गरुड़ व्यूह] नंदा राज जात आदि मंचीय अनुष्ठानों में वह स्वयं प्रतिभाग तो कर ही रहे हैं साथ ही विद्यालय के छात्र&छात्राओं को भी इन सभी कार्यक्रमों में प्रतिभाग करवा रहे हैं। १३ हजार फीट की ऊंचाई पर हिमालय की गोद में बसे मनणा बुग्याल में स्थित महिष मर्दिनी के मंदिर के लिए उन्होंने विशाल यात्रा के लिए प्रयास किये। जबकि गोपेश्वर के कैलाश भट्ट द्वारा बनाई गईं पहाड़ी टोपी का प्रचार&प्रसार किया सैकड़ों टोपियां इनके द्वारा देश&विदेश की कई हस्तियों को भेंट की गई। यह इनके लोकसंस्कृति के प्रति लगाव को दर्शाता है।

लखपत राणा ने आपदा से अपने द्घर को तबाह होते देखा है। इसलिए जब भी किसी को कोई परेशानी में होता है] तो उसकी मदद करने को आगे आते हैं। केदारनाथ आपदा में लोगों के लिए मसीहा बने। इस दौरान कई दिनों तक सैकड़ों यात्रियों की सेवा डॉ जैक्स वीन नेशनल स्कूल में की। कई सरकारी संगठनों को भी विद्यालय में ठहराकर राहत एवं बचाव कार्यों में सहयोग किया। साथ ही एनडीआरएफ] बीएसएफ] धाद आदि संगठनों के कार्यकर्ताओं को यहां उत्कृष्ट सेवा के दौरान ही सम्मानित कर उनका हौसला बढ़ाया। आपदा से प्रभावित कई बच्चों को निशुल्क शिक्षा व छात्रावास की व्यवस्था की जिनमें बंगाल की दो

बालिकायें भी शामिल हैं जिनके पिता की एक हादसे में मृत्यु हो गई थी। मां के सामने उन्हें पालने की विकट समस्या आ गई थी। राणा ने उन बालिकाओं को सहारा देकर न केवल पढ़ाया लिखाया] बल्कि उनके लिए बेहतर छात्रावास व्यवस्थायें प्रदान की। इन जरूरतमंद बालिकाओं को अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा तो दी ही खेलों में भी उनकी प्रतिभा को निखारा और दोनों बहिनों ने प्रदेश स्तर तक विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा लखपत राणा ने समाज की सेवा का बीड़ा उठाया है जिसमें गरीब कन्याओं की शादी में सहयोग करना] स्वच्छ भारत अभियान] पोलियो उन्मूलन] वृक्षारोपण] बालिका शिक्षा आदि पर निरंतर कार्य कर रहे हैं।

लखपत राणा कहते हैं कि मेरी प्रेरणा मेरे माता&पिता] पत्नी और फ्रांस के डॉ जैक्सवीन हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में हमेशा मुझे हौसला दिया। कहते हैं कि मनुष्य को जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। जबकि अपनी माटी और संस्कृति को कभी भी नहीं भूलाना चाहिए। यही हमारी असली पहचान है। बेहतर शिक्षा के आभाव में पहाड़ से पलायन हो रहा है। मेरी कोशिश है कि छात्रों को गुणवत्तापरक शिक्षा दे सकूं।

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