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बीज एवं तराई विकास निगम में हुआ ढैंचा बीज द्घोटाला राज्य के तत्कालीन कृषि मंत्री और मौजूदा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कारण सुर्खियों में रहा। ढैंचा से भी कहीं बड़ा गेहूं बीज द्घोटाला इसी निगम में हुआ है। १६ करोड़ के इस गेहूं बीज द्घोटाले के वक्त हरक सिंह रावत प्रदेश के कृषि मंत्री के साथ ही बीज एवं तराई विकास निगम के अआँयक्ष की कुर्सी पर विराजमान थे। द्घोटाले की जांच के लिए तत्कालीन अपर मुख्य सचिव रणवीर सिंह की अआँयक्षता में गठित जांच समिति ने साफ तौर पर १६ करोड़ के द्घपले की पुष्टि की है। जांच टीम ने इसके लिए १० शीर्ष अआिँाकारियों को दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की संस्तुति भी की। मगर प्रदेश में बड़े द्घोटालेबाजों को बचाने का रास्ता निकाल लिया जाता है। त्रिवेंद्र सरकार ने द्घपले की एसआईटी जांच करवा दी। जिसके बाद निचले स्तर के महज तीन अआिँाकारियों के विरुद्ध कार्रवाई कर इतिश्री कर ली गई। नतीजा यह हुआ कि अपर मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट में जिन अआिँाकारियों को दोषी ठहराया गया था उनमें से कुछ सेवानिवृत्त हो गए तो कुछ बड़े मजे में हैं। किसी को ऊंचे ओहदों पर भी बिठा दिया गया। दोषियों के खिलाफ टीडीएस के वर्तमान एमडी नीरज खैरवाल की चुप्पी आश्चर्यजनक है

उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व ऊधमसिंह नगर जिले के प्रमुख शहर रुद्रपुर से करीब पांच किलोमीटर दूर हल्दी में उत्तराखण्ड बीज एवं तराई विकास निगम (टीडीसी) की अच्छी साख हुआ करती थी। पूरे देश में यहां के बीज पर किसानों को इतना विश्वास था कि वे आंख मूंदकर बीज खरीदकर गुणवत्तायुक्त फसल पैदा करते थे। लेकिन देश भर में बनी अपनी इस खास पहचान को निगम अब खो रहा है। उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद यहां के अधिकारियों ने निगम को द्घोटालों का भंडार सा बना दिया। अब यहां से बीज कम द्घोटाले ज्यादा पैदा किए जा रहे हैं। ढैंचा बीज द्घोटाला : वर्ष २००५-०६ में उत्तराखण्ड में खरीफ की फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को ढैंचा बीज वितरण की योजना बनाई गई। तत्कालीन कूषि निदेशक की ओर से ९ फरवरी २०१० को योजना को कार्यान्वित करने के लिए निर्देश जारी किए गए। उसी दिन हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर, देहरादून और चंपावत जिलों में १४९०० कुंतल ढैंचा बीज की मांग की गई। ढैंचा बीज खरीदने के लिए जो कीमतें तय की गई। वे भी ६० प्रतिशत अधिक दरों पर तय की गई। २५ फरवरी २०१० को बिना निविदा प्रक्रिया अपनाए एक निजी संस्था निधि सीड्स को ढैंचा बीजों की खरीद का ठेका दे दिया गया। इसके साथ ही राज्य में ढैंचा बीज उपलब्ध कराने के नाम पर द्घपला किया गया। जिन वाहनों से ढैंचा बीज उपलब्ध कराया गया उनके नाम तथा नंबर भी गलत थे। २०१३ में मामले की जांच के लिए त्रिपाठी आयोग का गठन किया गया। जिसमें आरोपों को सही पाया गया। द्घोटाले में तत्कालीन कूषि मंत्री और वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, कूषि सचिव ओम प्रकाश और कूषि निदेशक मदनलाल का नाम समाने आया था। कुछ इसी तरह गेहूं बीज द्घोटाला भी सामने आया है। गेहूं बीज द्घोटाला : २०१५-१६ में बीज एवं तराई विकास निगम ने यूपी, बिहार के साथ ही कई राज्यों को बड़ी मात्रा में गेहूं का बीज भेजा था। बीज की गुणवत्ता में कमी बताकर राज्यों ने बीज की खरीद बीच में ही रोक दी और खरीदे हुए बीज को वापस भेजने की बात कही गई। इस पर टीडीसी के अफसरों ने तत्काल कीमतें द्घटा दी। ३१८८ रुपए प्रति कुंतल के गेहूं बीज को उत्तर प्रदेश में २१५० और बिहार में २३५० रुपए प्रति कुंतल बेचा गया। इसके बाद भी जब गेहूं बच गया तो आनन- फानन में एक नई स्कीम लागू कर दी। इस स्कीम के तहत ‘दो कट्टे के साथ एक फ्री पाओ’ की व्यवस्था की गई। इस तरह दो कुंतल गेहूं खरीदने पर एक कुंतल फ्री दिया गया। यूं तो यह योजना किसानों के लिए थी, पर गेहूं नेशनल हर्ब बरेली, साहू ब्रदर्स वाराणसी और कूषि सेवा केंद्र फर्रुखाबाद जैसे वितरकों को बेच दिया गया। इससे टीडीसी को १६ करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस तरह १६ करोड़ का यह दूसरा बीज द्घोटाला टीडीसी की छवि को एक बार फिर दागदार कर गया। जांच तो हुई, मगर कार्रवाई नहीं : टीडीसी में हुए गेहूं बीज द्घोटाले पर २१ जुलाई २०१६ को तत्कालीन अपर मुख्य सचिव डॉ रणवीर सिंह की अध्यक्षता में चार सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया गया। जांच टीम ने २८ जून २०१७ को रिपोर्ट सौंप दी। जिसमें गेहूं बीज में १६ करोड़ का द्घोटाला सिद्ध हुआ। द्घोटाले में १० अधिकारियों को आरोपी बनाया गया। जांच समिति ने आरोपी अधिकारियों पर विभागीय कार्यवाही करने की भी संस्तुति की। २८ जून २०१७ को टीडीसी के उप मुख्य कार्मिक अधिकारी सीके सिंह ने १० आरोपी अधिकारियों के खिलाफ ऊधमसिंह नगर जनपद के पंतनगर थाने में मुकदमा दर्ज करा दिया। लेकिन एक साल बाद भी विभागीय कार्रवाई नहीं हो सकी है। दोषी अधिकारियों को जेल भेजने के बजाय विभाग में खुली छूट दी जाती रही। यही नहीं उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर भी बिठाए रखा गया। आश्चर्यजनक है कि यह सब टीडीसी के एमडी की कुर्सी पर बैठे ऐसे आईएएस की मौजूदगी में होता रहा है जो अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध हैं। टीडीसी के एमडी और ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी डॉ नीरज खैरवाल का इस मामले में दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई न करना उनकी कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा रहा है। लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि आखिर खैरवाल इस मामले में चुप कैसे बैठ हैं? कठद्घरे में हरक सिंह रावत : टीडीसी के इस गेहूं द्घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन कूषि मंत्री हरक सिंह रावत भी कठद्घरे में हैं। रावत उस दौरान कूषि मंत्री के साथ ही टीडीसी के अध्यक्ष भी थे। ‘दो गेहूं के कट्टों के साथ एक फ्री’ स्कीम को हरी झंडी हरक सिंह रावत के रहते मिली। उनके द्वारा स्कीम से संबंधित टीडीसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक पीएस बिष्ट के प्रस्ताव को आंख मूंदकर अनुमोदित कर दिया गया। कूषि मंत्री रावत ने यह तक जानने का प्रयास नहीं किया कि किसानों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से शुरू की जा रही ‘दो खरीदो पर एक पाओ’ स्कीम उचित समय पर शुरू भी की जा रही है या नहीं। गेहूं बोने की समय सीमा १५ नंबर से १५ दिसंबर तक होती है। लेकिन ‘दो के बदले एक फ्री’ की यह स्कीम ४ जनवरी को शुरू की गई। चौंकाने वाली बात यह है कि जांच रिपोर्ट में उच्च अधिकारियों से लेकर निचले तबके के कर्मचारियों को आरोपी बनाया गया, मगर द्घोटाले में तत्कालीन कूषि मंत्री हरक सिंह रावत का नाम कहीं भी नहीं है। २०१० का बीज द्घोटाला : वर्ष २०१० में अंशधारक किसानों से १२३० रुपया प्रति कुंतल के हिसाब से बीज खरीदा गया, जबकि निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाते हुए यही बीज १६२० रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से खरीदा गया था। इसमें बीज एवं तराई विकास निगम को पूरे साढ़े तीन करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ था। भाटी आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में इस द्घोटाले की पुष्टि की थी। एक ही दिन में प्रस्ताव पास : गेहूं बीज बिक्री का समय समाप्त बताकर जिस तरह आनन-फानन में सभी अधिकारियों ने एक ही दिन में प्रस्ताव पास कर दिए वह भी चौंकाने वाला है। अधिकारियों के एक हस्ताक्षर के लिए महीनों तक फाइलें इधर से उधर सरका दी जाती हैं, लेकिन बीज बिक्री में दो कट्टे के साथ एक फ्री देने की स्कीम को दो ही दिन में ओके कर दिया गया। एक ही दिन में फाइल पर निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर से लेकर वरिष्ठ पांच अधिकारियों ने अपने हस्ताक्षर करके सहमति प्रदान कर दी। इसके अगले एक दिन में ही यह फाइल तत्कालीन कूषि मंत्री और टीडीसी के अध्यक्ष हरक सिंह रावत के देहरादून स्थित कार्यालय में ५०० किलोमीटर का सफर करने चली जाती है और वहां से तत्काल रुद्रपुर वापस भी आ जाती है। नहीं हुआ अपर मुख्य सचिव के आदेशों का पालन : एक साल के गहन विश्लेषण, अध्ययन और साक्ष्यों के आधार पर द्घोटाले की जांच रिपोर्ट बनाने वाले तत्कालीन अपर मुख्य सचिव डॉ रणबीर सिंह ने जब देखा कि कई दिनों बाद भी उनकी रिपोर्ट पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है तो उन्होंने ३ जुलाई २०१७ को टीडीसी के प्रबंध निदेशक को आदेश दिए कि एक सप्ताह के अंदर मामले में कार्यवाही करना सुनिश्चित करें। लेकिन एक सप्ताह तो छोड़िए, एक साल भी कोई कार्यवाही नहीं होना सिद्ध करता है कि आरोपियों को उच्च स्तर से सहयोग और समर्थन मिल रहा था। एक जांच पर दूसरी जांच का ड्रामा : हैरत की बात है कि प्रदेश सरकार अपने ही अपर मुख्य सचिव डॉ रणवीर सिंह की गेहूं बीज द्घोटाले की जांच पर संतुष्ट नहीं हो सकी। चार माह तक अपर मुख्य सचिव की जांच और आदेशों पर कार्यवाही कराने के बजाय सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। इस लापरवाही पर अपने आपको द्घिरा देख प्रदेश सरकार के कूषि मंत्री सुबोध उनियाल ने ६ सितंबर २०१७ में एसआईटी (विशेष जांच दल) से जांच शुरू कराने के आदेश दिए। नौ माह में महज तीन छोटे कर्मचारी गिरफ्तार : ६ सितंबर २०१७ को जब से एसआईटी की जांच शुरू हुई है तब से लेकर अब तक महज तीन लोगों की गिरफ्तारियां हो सकी हैं। गिरफ्तार लोगों में हरीकेश सिंह, छदन्नी लाल और ललित वोरा हैं। जो निचले स्तर के कर्मचारी हैं, जबकि उच्च अधिकारियों का अभी तक बाल बांका भी नहीं हुआ है। दूसरी बार हुए कार्रवाई के आदेश : आश्चर्यजनक हैं कि एक तरफ सरकार अपने अपर मुख्य सचिव की जांच पर कार्रवाई करने के बजाय एसआईटी जांच रखती है तो दूसरी तरफ शासन से खानापूर्ति के लिए कार्रवाई के आदेश भी जारी कर दिए जाते हैं। हाल में १६ मई २०१८ को एक बार फिर सभी १० आरोपी अधिकारियों पर कार्यवाही के आदेश जारी किए गए हैं। यह आदेश उत्तराखण्ड शासन के संयुक्त सचिव गजेंद्र सिंह ने जारी किए हैं। उन्होंने टीडीसी के प्रबंध निदेशक और पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति को अलग-अलग दो पत्र लिखकर टीडीसी में २०१५-१६ में हुए गेहूं बीज द्घोटाले में गठित जांच समिति की संस्तुति के आधार पर नियमानुसार अनुशासनात्मक विभागीय कार्यवाही किए जाने के आदेश जारी किए हैं। साथ ही एक सप्ताह के अंदर कार्यवाही कर शासन को अवगत कराने को कहा गया है। लेकिन एक सप्ताह के बाद भी अभी तक दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों पर कोई कार्यवाही नहीं होना शासन-प्रशासन की नीयत को उजागर करता है। कौन-कौन अधिकारी हैं दोषी : पीएस बिष्ट प्रबंध निदेशक, आर के निगम कंपनी सचिव, पीके चौहान मुख्य अभियंता (इंचार्ज विपणन), दीपक पांडे मुख्य बीज उत्पादन अधिकारी, एके लोहानी उप मुख्य विपणन अधिकारी, अजीत सिंह उप मुख्य विपणन, बीडी तिवारी उप मुख्य वित्तीय अधिकारी, शिव मंगल त्रिपाठी प्रशासनिक अधिकारी, जीसी तिवारी लेखाकार, अतुल पांडे लेखाकार। यह है मामला : बीज एवं तराई विकास निगम द्वारा रबी वर्ष २०१४-१५ में गेहूं बीज की विभिन्न प्रजातियों का उत्पादन कर रबी फसल २०१५-१६ के लिए ३३०९१७ ़२४ कुंतल गेहूं बीज अंतरग्रहण किया गया। बीज का सबसे पहले निरीक्षण निगम द्वारा अपने स्तर पर एवं पुनः प्रोसेसिंग करने के बाद बुकिंग करने से पूर्व बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा किया गया। इस तरह दो बार परीक्षण के बाद बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा विधिवत प्रमाणिक बीज की पैकिंग की गई। जिसकी मात्रा २९०८४६ ़६० कुंतल थी। निगम द्वारा उत्तर प्रदेश और बिहार में बीज बेचा गया। गौरतलब है कि गेहूं की बुआई का फसल चक्र समय १५ नवंबर से १५ दिसंबर तक ही होता है। इस समयावधि के दौरान काफी मात्रा में बीज अपने गंतव्य तक पहुंच चुका था। लेकिन इसके बावजूद निगम के अधिकारियों द्वारा बीज की तय दरों में ३० प्रतिशत की कटौती कर बीज बेच दिया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि बीज काफी मात्रा में बच रहा था। जिसे बेचने के लिए निर्धारित दर ३००० को २२०० रुपए प्रति कुंतल किया गया। इसी तरह एनएससी की बिक्री दर २७५० से कम करते हुए २३५० प्रति कुंतल कर दी गई। इसके बाद अधिकारियों ने बीज की जमाव क्षमता कम होने की बात कही। दलील दी गई कि डेढ़ लाख कुंतल बीज अभी भी शेष बच रहा है। इसके बाद निर्धारित द्घटी दर २३५० प्रति कुंतल की दर के साथ ही ‘दो के साथ एक फ्री’ स्कीम चलाई गई। इस स्कीम में ४०-४० किलो यानी दो कुंतल के दो गेहूं के कट्टों के साथ ४० किलो का एक कट्टा निशुल्क दिए जाने का प्रस्ताव पास करा दिया गया। यह निर्णय ४ जनवरी २०१६ को ऐसे समय में लिया गया जब गेहूं की बुवाई पूरी तरह बंद हो जाती है। अगर ‘दो के साथ एक फ्री’ की स्कीम शुरू की जानी थी तो १५ नवंबर से १५ दिसंबर के दौरान की जाती, क्योंकि इसी समय ही गेहूं की फसल बुआई होती है। इस तरह ४ जनवरी २०१६ को अधिकारियों की आनन-फानन में लाई गई ‘दो के साथ एक फ्री’ स्कीम सवालों के द्घेरे में आ गई। जांच कमेटी ने संबधित थाने में इसकी एफआईआर दर्ज करने के अलावा दोषी अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्यवाही करने और आरोपी अधिकारियों से निगम को हुए द्घाटे की धनराशि वसूल करने की भी संस्तुति की है। उल्लेखनीय है कि १० आरोपी अधिकारियों में से एक अतुल पांडे की मृत्यु हो चुकी है, जबकि पीके चौहान सहित पांच अधिकारी रिटायर्ड हो चुके हैं। टीडीसी के तत्कालीन आरोपी अधिकारी पीएस बिष्ट ने टीडीसी के प्रबंध निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था। शासन ने उन पर कार्यवाही करने के बजाय उन्हें वापस उनके मूल संस्थान पंतनगर विश्वविद्यालय में भेज दिया। फिलहाल टीडीसी के प्रबंध निदेशक का प्रभार ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी डॉ नीरज खैरवाल के पास है। जांच में यह स्पष्ट हुआ कि करीब ८१ हजार ६२१ ़६५ कुंतल गेहूं का बीज किसानों को न देकर उत्तर प्रदेश की तीन प्राइवेट पार्टियों को बेच दिया गया। ये कंपनियां हैं बरेली स्थित नेशनल हर्ब, वाराणी स्थित साहू ब्रदर्स तथा फर्रुखाबाद स्थित कूषि सेवा। इसके अलावा वितरकों को भेजा गया बीज पुनः उन्हीं वितरकों को द्घटी हुई दरों पर दे दिया गया। जबकि निगम की शर्तों के अनुसार बीज को पुनः निगम का मानकर द्घटी हुई दरों पर विक्रय का प्रावधान नहीं है। कमेटी की जांच रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि इससे बीज एवं तराई विकास निगम को १६ करोड़ का द्घाटा हुआ। इसके लिए १० अधिकारियों को दोषी माना गया।

 

साख पर सवाल
किसी समय गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध रहा बीज एवं तराई विकास निगम (टीडीसी) आज अपनी बदहाली पर रो रहा है। फिलहाल निगम एक-एक पैसे को मोहताज है। हालत यह है कि कई महीनों से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है। अफसरों की ऐशपरस्ती, राजनीतिक हस्तक्षेप और कुप्रबंधन की दीमक इसे चट कर गई। प्रबंधन और वित्तीय स्थिति इतनी बदहाल हो गई है कि आज निगम का वजूद खतरे में है। अपनी स्थापना के बाद से आज तक उत्तम गुणवत्तायुक्त बीजोत्पादन तथा देश-विदेश में उनकी आपूर्ति के लिए कई बार पुरस्कूत हो चुका है। वर्ष १९८८, ८९, ९०, ९२ में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय उत्पादकता सम्मान से नवाजा जा चुका है। लेकिन टीडीसी आज पूरी तरह लड़खड़ा रहा है। यह संभल पाना तो दूर अपनी साख तक बचाने में नाकाम साबित हो रहा है। शायद ही कोई साल ऐसा बीतता होगा जब टीडीसी का कोई ना कोई द्घोटाला सामने न आ जाता है। इसके चलते निगम की छवि इतनी दागदार हो गई है कि पिछले १०-१२ सालों से यह कोई उल्लेखनीय सम्मान अर्जित नहीं कर पाया है। याद रहे कि यह वही निगम है जहां नियमों को ताक पर रखकर भाजपा नेता हेमंत द्विवेदी की अध्यक्ष पद पर नियुक्ति कर दी गई थी। द्विवेदी ने भी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ४७ अधिकारियों की नियुक्ति कर दी थी। वरिष्ठ आईएएस ऑफिसर केआर भाटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया था कि द्विवेदी के कार्यकाल के दौरान निगम में भय, दबाव और दुरभि संधि का वातावरण रहा। द्विवेदी के इर्द- गिर्द रहने वाले कई बंदूकधारी सुरक्षा गार्डों से अधिकारियों ने खुद को असहज महसूस किया।

बात अपनी-अपनी
इस मामले की जांच पुलिस का स्पेशल स्टाफ कर रहा है। जो भी दोषी है उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। हरक सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री

एक समय टीडीसी देश में प्रतिष्ठित नाम था। आज यह संस्था ५६ करोड़ के नुकसान में चल रही है। ऐसे में जिन लोगों ने टीडीसी को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। सुबोध उनियाल,

कृषि मंत्री हमने अपनी जांच में तीन नए लोगों के नाम उजागर कर उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। आरोपी अधिकारी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं जिसके कारण जांच कार्य प्रभावित हो रहा है। हम आरोपियों के हाईकोर्ट में चल रहे अरेस्टिंग स्टे को खारिज कराने की पूरी तैयारी कर चुके हैं। जुलाई में अर्जेंसी लगाकर उन्हें गिरफ्तार कर सकते हैं। देवेंद्र पिया, प्रभारी एसआईटी

इस मामले में उच्च अधिकारियों को बचाया जा रहा है। जबकि हम जैसे छोटे कर्मचारियों को जांच के नाम पर प्रताड़ित किया जा रहा है। हम तो उच्च अधिकारियों के आदेशों का पालन करते हैं। जैसा मुख्य अधिकारियों ने कहा हमने कर दिया। जीसी तिवारी, आरोपी लेखाकार

जिस तरह एन-७४ में आईएएस ऑफिसरों को बचाया गया है और आईपीएस को फंसाया गया। इसी तरह टीडीसी में भी हो रहा है। छोटी मछलियों को फंसाकर बड़े मगरमच्छों को बचाना ही यहां की शैली बन गई है। जो भी निर्णय हुए हैं सभी निदेशक मंडल की तरफ से हुए। पी.के. चौहान, मुख्य अभियंता टीडीसी (आरोपी अधिकारी)

नोट :- टीडीसी के प्रभारी प्रबंध निदेशक नीरज खैरवाल से बार-बार संपर्क करने पर भी वे बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं हुए। रुद्रपुर के मेडीसिटी फर्जीवाड़े और अवैध खनन पर ‘दि संडे पोस्ट’ के समाचारों के बाद से ही खैरवाल ने इस अखबार से बात करना बंद कर दिया है।

 

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