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Uttarakhand

मंत्रियों से ज्यादा नौकरशाहों पर भरोसा

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुंहलगी नौकरशाही मंत्रियों की जरा भी परवाह नहीं कर रही है। यहां तक कि कामकाज को लेकर मंत्री अधिकारियों से कुछ कहना चाहें तो वे विभागीय समीक्षा बैठकों में आने की भी जरूरत नहीं समझते। अपने मंत्रियों को सूचना दिए बिना ही सचिव राजधानी या राज्य से बाहर चले जाते हैं। मंत्री जब इसकी शिकायत करने मुख्यमंत्री के पास जाते हैं तो मुख्यमंत्री नौकरशाही के बजाए मंत्रियों को ही संयम रखने की नसीहत दे डालते हैं। अपनी उपेक्षा और अपमान से मंत्री भीतर ही भीतर द्घुट रहे हैं। मुख्यमंत्री की यह कार्यशैली विस्फोटक रूप ले सकती है

उ त्तराखण्ड में लगभग हर मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों से ज्यादा भरोसा नौकरशाहों पर किया है। नतीजतन हर सरकार के समय नेतृत्व परिवर्तन के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी हिलाए जाने के प्रयास होते रहे। विवादों के बीच सरकार पर गंभीर सवाल भी खड़े हुए। मुख्यमंत्रियों को अपनी कुर्सी से हाथ तक धोना पड़ा। वर्तमान सरकार में भी यही सब देखने को मिल रहा है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत सरकार में शामिल मंत्रियों से ज्यादा तवज्जो नौकरशाही को दे रहे हैं। जिससे सरकार के भीतर अविश्वास का माहौल पनप रहा है। हाल ही में मुख्यमंत्री और सरकार के कुछ मंत्रियों के बीच रिश्तों में खटास की खबरें जिस तरह सामने आई हैं, उससे साफ है कि सरकार में एक वर्ष बाद भी सब कुछ सामान्य नहीं हो पाया है। पूर्व में भी मुख्यमंत्री और मंत्रियों के बीच कामकाज और अनुभव को लेकर शीतयुद्ध की खबरें सामने आ चुकी हैं। एक बार फिर से रिश्तों में अविश्वास की खबरें सरकार के अंदर से ही छनकर आ रही हैं। कहा जा रहा है कि सरकार में दूसरे नंबर के मंत्री के साथ मुख्यमंत्री के रिश्ते एक बार फिर से तल्ख हो चले हैं। मंत्री जी पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री से मिलने उनके कार्यालय में गए तो वहां एक चर्चित नौकरशाह भी मौजूद थीं। मंत्री जी ने अपनी बात कहने के लिए मुख्यमंत्री से एकांत में मिलने को कहा तो मुख्यमंत्री ने मंत्री से नौकरशाह की मौजूदगी में ही अपनी बात रखने को कहा। इस पर मंत्री ने जोर देकर अपनी बात दोहराई, लेकिन न तो मुख्यमंत्री ने मंत्री की बात को तवज्जो दी और न ही उक्त नौकरशाह ने उठने का प्रयास किया। अखिरकार मंत्री जी तमतमाते हुए बगैर बात किए ही लौट गए। अब इस अपमान से मंत्री जी खासे नाराज बताए जा रहे हैं। सरकार के भीतर से छनकर आ रही खबरों की मानें तो कुछ खास और चहेते नौकरशाहों पर मुख्यमंत्री का अतिविश्वास इस कदर बढ़ चुका है कि वे अपने सहयोगी मंत्रियों और विधायकों के साथ एकांत में मिलने के बजाय नौकरशहों की मौजूदगी में ही बात करने या मिलने का प्रयास करते हैं। इसके चलते कई मंत्री नाराज बताए जा रहे हैं। खबर यह भी है कि विभागीय काम के लिए कुछ मंत्री मन मारकर नौकरशाहों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री से बात कर तो रहे हैं, लेकिन भीतर ही भीतर मुख्यमंत्री की कार्यशैली से वे भी नाराज बताए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री और मंत्रियों के संबधों में खटास की खबरें सरकार के शुरुआती महीनों से ही सामने आती रही हैं। इस तरह की खबरों को ज्यादा तूल नहीं दिया गया। सरकार में दूसरे नंबर के मंत्री प्रकाश पंत और मुख्यमंत्री के साथ आपसी मनभेद की खबरें सामने आ चुकी हैं। पंत के बारे में कहा जाता है कि केंद्रीय मंत्रियों से बात करने और सरकार के प्रस्तावों में पंत जितना बेहतर होमवर्क करके सफलता हासिल करते रहे हैं उतना मुख्यमंत्री नहीं कर पा रहे हैं। इसका पहला कारण राजनीतिक-प्रशासनिक अनुभव बताया जा रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि पंत से आबकारी विभाग न संभले जाने की खबरें एक सोची-समझी रणनीति के तहत उड़ाई जा रही हैं। जिससे आने वाले समय में आबकारी विभाग किसी अन्य मंत्री को दिया जा सके। हैेरत की बात यह है कि तीन जिलों के जिन आबकारी अधिकारियों के निलंबन आबकारी मंत्री प्रकाश पंत द्वारा किए गए, महज तीन दिनों के भीतर ही उनको हाईकोर्ट से स्टे मिल गया और उनकी तैनाती भी हो गई। कहा जाता है कि इस पूरे मामले में जानबूझ कर हाईकोर्ट में मजबूत पैरवी तक नहीं होने दी गई, जिससे आसानी से स्टे मिल गया। अब सवाल यह है कि आखिर जिन अधिकारियों का राजस्व को हानि पहुंचाने के आरोप में मंत्री प्रकाश पंत निलंबन करते हैं, वे किस तरह आसानी से स्टे पा जाते हैं। सूत्रों की मानें तो इसके पीछे भी आबकारी विभाग की अंदरूनी राजनीति ही सामने आई है। जिससे आबकारी विभाग और आबकारी मंत्री पर सवाल खड़े होने का मौका मिल सके। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमंत्री अपने सहयोगी प्रकाश पंत से इस बात से नाराज बताए जा रहे हैं कि पंत अपने अनुभव और कार्यशैली से कहीं न कहीं मुख्यमंत्री से बीस साबित हो रहे हैं। पूर्व में मुख्यमंत्री और प्रकाश्ा पंत दोनों ही दिल्ली के उत्तराखण्ड निवास में मौजूद थे। बताया जाता है कि दोनों कई घंटों तक साथ रहे। लेकिन प्रकाश पंत केंद्रीय वित्त मंत्री के साथ बैठक करने के लिए ही दिल्ली गए हुए थे, जबकि मुख्यमंत्री को इसकी भनक मीडिया के द्वारा लगी। इस से मुख्यमंत्री नाराज भी हुए। इसके अलावा विशिष्ट बीटीसी की मान्यता के संबंध में भी प्रकाश पंत मुख्यमंत्री से आगे रहे। शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे और मुख्यमंत्री के आपसी संबंधों में भी तल्खियां बताई जा रही हैं। शिक्षा विभाग को सुधारने के लिए पाण्डे ने जो कड़े नियम और आदेश जारी किए उससे सरकार और भाजपा के भीतर खासी गहमागहमी का माहौल बन चुका है। शिक्षकों के स्थानांतरण के लिए बनाए गए एक्ट को सरकार ने ताक पर रखते हुए महज १० फीसदी शिक्षकों के स्थानांतरण को पलट दिया, उससे शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे खासे नाराज बताए जा रहे हैं। अब कहा जा रहा है कि पूर्व की भांति राजनीतिक हस्तक्षेप और शिफारिशों से चहेतों के लिये स्थांनातरण का काम शुरू हो चुका है। जिस पर बड़ी हद तक शिक्षामंत्री अरविंद पांडे लगाम लगाने में सफल रह हो रहे थे। अब सरकार ने अपने ही स्थानांतरण एक्ट में ढील देकर अरविंद पाण्डे की मुहिम को झटका दिया है। अरविंद पाण्डे को कमतर साबित करने के प्रयास पहले भी हुए हैं। पाण्डे द्वारा राज्य के सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड को लागू करने के आदेश पर उनके खिलाफ माहौल बनाया गया। सोशल मीडिया पर शिक्षामंत्री को ड्रेस कोड लागू करवाने की एक तरह से शिक्षक नेताओं द्वारा चुनौतियां दी गई। पाण्डे को एक खलनायक के तौर पर भी प्रस्तुत किया गया। तब मुख्यमंत्री अपने अधिकारियों सहयोगी मंत्री के पक्ष में खड़े होने के बजाय शिक्षकों के पक्ष में खड़े हो गए। शिक्षकों के एक शिष्टमंडल के साथ बैठक कर ड्रेस कोड को लागू नहीं करवाने के लिए सहमति बनाये जाने की बात कह कर शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे को बैकफुट में ला खड़ा कर दिया। शिक्षकों के इस शिष्टमंडल की अध्यक्षता स्वयं मुख्यमंत्री की पत्नी कर रही थी। शिक्षकों को ड्रेस कोड लागू करवाने के बजाय आपसी सहमति का माहौल बनाए जाने की बात से शिक्षक इतना उत्साहित हुए कि देहरादून में शिक्षकों के एक बड़े कार्यक्रम में मुख्यमंत्री को मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया, लेकिन अपने ही विभागीय मंत्री अरविंद पाण्डे को कार्यक्रम का निमंत्रण तक नहीं दिया गया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि शिक्षा मंत्री के आदेशों को उनके ही विभागीय शिक्षक कभी भी पलटवा सकते हैं। अभी हाल ही में शिक्षा मंत्री द्वारा पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार के समय अनुरोध और चिकित्सीय कारणों से दुर्गम क्षेत्रों से हुये स्थानांतरण को रद्द कर सभी को मूल तैनाती पर जाने का आदेश जारी किया गया। इसका स्थानांतरित शिक्षकों ने भारी विरोध किया और इसके खिलाफ देहरादून में बड़ा कार्यक्रम भी किया। बताया जाता है कि कई शिक्षकों ने इस मामले में हाईकोर्ट से स्थगन आदेश तक ले लिया है जबकि इस मामले में भी मुख्यमंत्री शांत बैठे रहे। सूत्रों की मानें तो शिक्षक स्थानांतरण आदेश को रद्द करवाने के लिए अनुकूल समय देख रहे हैं। इस बीच अरविंद पाण्डे के खिलाफ माहौल तो बन ही चुका है। कांग्रेस से भाजपा में आए परिवहन मंत्री यशपाल आर्य अपनी उपेक्षा से खासे नाराज बताए जा रहे हैं। परिवहन सचिव के साथ उनकी तनातनी की खबरें समाने आ चुकी हैं। अपने सचिव के साथ हुए विवाद से आर्य इतने दुखी हुए कि मुख्यमंत्री से अपनी व्यथा जता चुके हैं। सूत्रों की मानें तो आर्य कह चुके हैं कि या तो उनसे परिवहन मंत्रालय वापस लिया जाए या सचिव का स्थानांतरण किया जाए। बताते चलें कि परिवहन सचिव डी सेंथिल पांडियन ने विभागीय समीक्षा बैठक में उपस्थित नहीं हुए तो आर्य इससे बेहद नाराज हुए। परिवहन विभाग में मृतक आश्रितों को सेवा में लेने और कई वर्षों से विभागीय डीपीसी न होने के चलते भी शासन और मंत्री के बीच नाराजगी बताई जा रही है। द्घोटाले और अनियतिताओं के मामले में भी शासन स्तर से कार्यवाही न होने से नाराजगी बढ़ी है। अभी हाल ही में सांसदों और विधायकों के मुफ्त यात्रा के मामले में भी परिवहन विभाग की खासी फजीहत सामने आ चुकी है। पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की उपेक्षा का आलम यह है कि उनकी सहमति के बिना ही पर्यटन सचिव का स्थानांतरण कर दिया गया। केदारनाथ में हैलीकांप्टर मामले में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के बजाए सतपाल को ही संयम बरतने की नसीहत की। राज्य के सबसे चर्चित और हनक वाले मंत्री हरक सिंह रावत की बात करें तो उन्होंने सरकार बनने के बाद ही सार्वजनिक तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री निशंक और हरीश रावत को सबसे बेहतर मुख्यमंत्री बताकर यह जाहिर कर दिया था कि उनकी त्रिवेंद्र रावत सरकार में उपेक्षा हो रही है। कई ऐसे मामले सामने आये हैं जिसमें हरक सिंह रावत नौकरशाहों की कार्यशैली को लेकर मुख्यमंत्री को नाराजगी बता चुके हैं लेकिन मुख्यमंत्री स्तर से कोई कदम नहीं उठाया गया। हरक सिंह रावत और श्रम विभाग के सचिव के बीच मतभेद की खबरें छनकर सामने आ रही हैं। नियमानुसार कोई अधिकारी राज्य या राजधानी से बाहर जाता है तो उसकी सूचना मुख्यमंत्री कार्यालय और विभागीय मंत्री को दिया जाना जरूरी होता है। कहा जाता है कि सचिव ने कभी भी इस नियम का पालन नहीं किया है। बगैर सूचना दिये ही सचिव बाहर चले जाते हैं। हरक सिंह रातव ने इस पर कड़ा ऐतराज जताया है। मुख्यमंत्री को इसकी जानकारी तक दी है, फिर भी सचिव ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली है। केंद्र सरकार से करोड़ों का बजट राज्य को आवंटित हुआ है। कहा जा रहा है कि मंत्री को बाईपास करने का षड्यंत्र करने की सुगबुगाहट सामने आ रही है। हरक सिंह रावत इस बात से भी खासे नाराज बताए जा रहे हैं कि राज्य में स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम को चलाने के लिए बाहरी राज्यों की एजेसियों को गुपचुप तरीके से काम दिए जाने का खेल शासन और नौकरशहाों द्वारा रचा जा रहा है।

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